तारीख 10 नवंबर... 2025 .जगह — दिल्ली का लाल किला..घड़ी में शाम के 6.55 मिनिट हुए थे। एक i20 कार धीमी गति से लाल किला मेट्रो स्टेशन की तरफ आगे बढ़ती...और रेड लाइट के पास पहुचते ही अचानक ब्लास्ट हो जाती है.. धमाका इतना जबरदस्त होता है ..कि गाड़ी के परखच्चे उड़ जाते, आसपास खड़ी गाड़ियां आग का गोला बन जाती है। और . कार के टुकड़े सौ मीटर तक बिखर जाते है.. सिर्फ़10 सेकंड के भीतर इस ब्लास्ट में 13 लोगो की मौत और 17 लोग घयाल हो जाते है. Raw, NSG, NIA, जैसी देश की बड़ी बड़ी खुफिया... एजेंसिया एलर्टमोड़ पर आ जाती है..दिल्ली, यूपी, हरियाणा, मध्यप्रदेश —जैसे आधा दर्जन से ज़्यादा राज्यों में हाई एलर्ट घोषित कर दिया जाता है.. दिल्ली की सड़के पुलिस के सायरनो से गूज उठती है ....
सवाल ये नहीं ये नहीं की ब्लास्ट कैसे हुआ...सवाल तो ये है कि — कब तक? हमारे ही शहरों में, हमारी ही सड़कों पर, हमारे ही लोगों का खून बहाया जाएगा? क्या 2005, 2008, और 2011 का वो दौर फिर से लौट रहा है? जिसने देश की राजधानी दिल्ली को खून से लाल कर दिया था .और अगर हाँ — तो कौन है इसके पीछे? कहाँ से रची गई ये साजिश? जिसने देश के दिल में एक और नया घाव दे दिया ..
दिल्ली धमके की इनसाइड स्टोरी .आप समझे ? उससे पहले ये जान लीजिये.. की ये पहली बार नहीं है जब दिल्ली ऐसे आतंकियों के आतंक से लाल हुई है.. इसके पहले 29 अक्टूबर 2005 को भी धनतेरस के दिन दिल्ली तीन सीरियल बम ब्लास्ट से काप उठा थी .तब सड़कों पर लाशें बिछ गईं थी। किसी का धड़ तन से अलग था ..तो किसी के हाथ-पैर अलग जमींन पर पड़े थे । दर्जनों गाड़ियां जल कर खाक हो गईं थी,और 67 लोग मारे गए थे।ये जख्म देश अभी भुला भी नही था की इसके 3 साल बाद ..सितंबर 2008 में दिल्ली के 5 अलग-अलग जगहों पर सीरियल बम ब्लास्ट हुए। जिसमे 25 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा लोग घायाल हुए .
इन दोनो बम ब्लास्ट के पीछे लश्करे-तैयबा और इंडियन मुजाहिदीन का हाथ था ..वही आतंकी संगठन जिन्होंने जिहाद के नाम पर. 92 निहथ्थे हिन्दुस्तानियों का लहू पानी की तरह सडको में बहा दिया ! ये कहानी सिर्फ़ सरहद पार के आतंक की नहीं है... ये कहानी है, उन दुश्मनों की — जो हमारे ही बीच छिपे हैं। जिनमे — कोई डॉक्टर है, कोई स्टूडेंट, तो कोई प्रोफेसर है ... लेकिन इनके अंदर पल रही होती है एक और पहचान — “जिहादी”, “मुजाहिद”,या फिदायीन” की । इनका मकसद होता है — देश के अंदर से ही देश के लोगो पर हमला करना। 2005 हो ,2008 हो ,या फिर 2025 —हर बार हमले का वही पैटर्न रहा है.. बस जगह और आतंकी बदल रहे
इन्हें सोशल मीडिया के ज़रिए टार्गेट किया जाता है। धर्म के नाम पर ब्रेनवॉश किया जाता है। और फिर किसी एक ‘मौलवी’, किसी एक ‘हैंडलर’ के इशारे पर, ये सब कुछ छोड़कर “जन्नत” के सपने में कूद जाते हैं। सवाल सिर्फ़ इतना नहीं कि ये हमले कौन करता है... सवाल ये भी है कि कौन उन्हें ऐसा करने पर मजबूर करता है? जवाब एक नहीं — कई हैं। कभी PoK में बैठे जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन, तो कभी लश्कर-ए-तैयबा जैसे नेटवर्क, जो धर्म के नाम पर बच्चों तक को हथियार थमा देते हैं। जो बेगुनाह लोगो का खून बाहते है ..
१० नवम्बर की शाम भी यही हुआ ? जब दिल्ली के लाल किले से करीब 300 मीटर दूर एक i20 कार में बैठे आतंकियों ने खुद को विस्फोट से उड़ा लिया इस ब्लास्ट.में 12 लोगों की मौत हुई ..और २० से ज्यादा लोग घायल हुए.. वैसे हमले की योजना तो 6 दिसंबर की थी ...06 दिसंबर, यानी बाबरी मस्जिद विध्वंश का दिन .आतंकी बाबरी विध्वंश का बदला लेना चाहते थे.और इस बदले के लिए आतंकियों ने 32 कारों का इंतजाम भी किया था। इनमें बम और विस्फोटक सामग्री भरकर धमाके किए जाने थे।..आतंकियों के निशाने पर सिर्फ लाल किला नहीं था ? उनके निशाने पर हिंदुस्तान के हाजरो लोगो की मौत का प्लान था.. जिसे तुर्की और पाकिस्तान में बैठे आका कमंड कर रहे थे ... . लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियों की मुस्तैदी ने इसे नाकाम कर दिया .. और जो हमले देश के अलग अलग हिस्सों में होने थे ..वो लाल किला ब्लस्ट तक ही सिमित रह गया ...
देश की खुफिया एजेंसियों को इनके प्लान की भनक लग चुकी थी... हर कॉल, हर मूवमेंट अब रडार पर था। और फिर — 18 अक्टूबर 2025।सबसे पहली गिरफ्तारी कश्मीर से मौलवी इरफान हुई ...इराफन वही सख्स था जो जैश-ए-मोहम्मद के हैंडलर के रूप में काम कर रहा था । इरफान ने गिरफ्तार होते ही उस “डॉक्टर मॉड्यूल” की परतें खोली जिसे जैश-ए-मोहम्मद ने कश्मीर से यूपी और हरियाणा तक फैला रखा था। इरफान के सुराग पर 5 नवम्बर को सहारनपुर से डॉ. आदिल गिरफ़्तार हुआ। पूछताछ में आदिल ने बताया कि 4 अक्टूबर को उसकी शादी में दिल्ली ब्लास्ट की साजिश रची गई थी। वहीं तय हुआ था कि “अल फला यूनिवर्सिटी” के डॉक्टरों के जरिए बम, कार और टाइमिंग तय होगी ।
इराफन की सिनाख्त पर ही 8 नवंबर को हरियाणा के फरीदाबाद और कश्मीर में एक साथ छापे मारे गए। जहाँ से डॉ. मुजम्मिल को गिरफ्तार किया गया — डॉ. मुजम्मिल की निशानदेही पर 2900 किलो विस्फोटक जब्त किया जाता है।लेकिन असली मास्टरमाइंड — डॉ. उमर नबी — फरार हो जाता है। उमर-नबी को पकड़ने जाने का डर या नेटवर्क टूटने के खतरे ने 6 दिसंबर” के बजाय 10 नवंबर की शाम, लाल क़िला मेट्रो स्टेशन के पास उमर ने कार के साथ खुद को उड़ा लिया है।
ये लोग सिर्फ़ दिल्ली तक सीमित नहीं थे। इनके नेटवर्क की जड़ें — लखनऊ, पुलवामा, और फरीदाबाद तक फैली हुई थीं। तीनों जगहों पर एक ही पैटर्न — एक ही एजेंडा — “जिहाद के नाम पर तबाही”। और इन सबके पीछे.था मौलवी इरफान अहमद, जो इस मॉड्यूल का “मास्टरमाइंड” था।उसी ने इन पढ़े-लिखे नौजवानों के दिमाग़ में जहर भरा —और कहा — “तुम डॉक्टर नहीं, अल्लाह के सिपाही हो।” यह वही “इनसाइड टेरर” है — जो जिहाद के नाम पर देश का लहू बहा रहे है ..लाल किला धमाके से पहले — इन डॉक्टरों ने करीब 4 महीने तक 32 कारों में बम फिट करने की प्रैक्टिस की थी। और इन्हें मॉनिटर कर रहे थे — तुर्की और पाकिस्तान में बैठे हैंडलर। कोडवर्ड में मेसेज आते थे — “नूर तैयार है”, “रेड गेट खुला है”...मतलब, अब अगला टारगेट फिक्स है। ये कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं था — ये महीनों की प्लानिंग, फंडिंग और ट्रेनिंग का नतीजा था। वो ट्रेनिंग — PoK के आतंकी कैंपों में दी गई, और उसका एक्सीक्यूशन दिल्ली की सड़कों पर किया गया।
भारत में इतनी बड़ी तादद में हमले और बाबरी विध्वंश के बदले का प्लान चार महीने पहले पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में मौजूद जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के ठिकानों पर तैयार किया गया ।अगस्त से अक्टूबर के बीच PoK में आतंकियों के अलग-अलग गुटों की कई हाई लेवल मीटिंग भी हुई..जिसमे जमात-ए-इस्लामी और ISI के सीनियर अफसर भी शामिल हुए ।इस मीटिंग में तीन अहम फैसले लिए गए पहला ..भारत में निष्क्रिय हो चुके आतंकी ग्रुप को फिर से एक्टिव करना... दूसरा आतंकी कैंपों में ट्रेनिंग ले चुके x कमांडरों को फिर से काम पर लगाना। और तीसरा भारत में स्लीपर सेल को एक्टिव करना और उन्हें फिदायीन हमले के लिए तैयार करना।
इसी मीटिंग के बाद भारत में जैश का पुराना नेटवर्क दोबारा सांस लेने लगा —और उसकी पहली झलक थी — फरीदाबाद डॉक्टर मॉड्यूल. जिसने इतनी बड़ी साजिश रची .. इसी मॉड्यूल का हिस्सा थे ..फरीदाबाद की अल फला मेडिकल यूनिवर्सिटी से पकड़े गए डॉ. मुजम्मिल और उसकी दोस्त डॉ. शाहीन....डॉ. शाहीन — वही महिला, थी जो क्लासरूम में एनेस्थीसिया पढ़ाती थी, लेकिन रात में सोशल मीडिया पर ‘जिहाद की खुराक’ बांटती थी। उसकी चैट कोड वर्ड होती थी — लेकिन ये अकेले नहीं थे इसमें उमर और डॉ. आदिल भी शामिल थे। जिसमे से उमर ने दिल्ली में कार ब्लस्ट को अंजाम दिया ..
FSL की शुरुआती जांच रिपोर्ट में कई अहम् खुलासे हुए है ..जैसे कार में मिलिट्री-ग्रेड RDX और नाइट्रेट बेस्ड ब्लेंड का इस्तेमाल हुआ। डिवाइस — रिमोट डिटोनेशन मॉडल पर आधारित था । NSG, और NIA की जांच में ये भी सामने आया की जैश-ए-मोहम्मद की महिला विंग अक्टूबर से भारत में एक्टिव हो गई थी। जिसकी कमान डॉ. शाहीन संभल रही थी..डॉ. शाहीन अल-फला यूनिवर्सिटी में पढ़ाती थी। शाहीन का काम था ..लड़कियों का ब्रेनवॉश करना ...और उन्हें महिला विंग ''जमात उल मोमिनीन में शामिल कराना .. जमात उल मोमिनीन जैश की वो महिला विंग थी जिसका काम था — लड़कियों का ब्रेनवॉश करना , सोशल मीडिया के जरिए जिहाद का प्रचार करना , और स्थानीय नेटवर्क में आतंकियों की भर्ती कराना। यानी ये कोई हादसा नहीं — ये एक ऑपरेशन था। और इसके हर मिनट, हर सेंकेंड की टाइमिंग पहले से तय की गई थी। जिसका कमांड सीमा पर से आ रहा था ..
ये कहानी सिर्फ़ दिल्ली ब्लास्ट की नहीं है…ये उस जिहाद वाली बीमारी की है, जो धीरे-धीरे इस मुल्क के भीतर फैल रही है। जिसमे PoK में बैठा कोई मौलवी, श्रीनगर के इमाम को आदेश देता है…और वो दिल्ली की यूनिवर्सिटी में बैठे डॉक्टरों को “जिहाद” के लिए ..अपनी जान तक देने को तैयार कर देता है .. दिल्ली में हुए हमले से समझ लीजिए, की आतंक सिर्फ़ सीमाओं से नहीं आता — वो हमारे क्लासरूम तक घुस चुका है।
डॉक्टर, जो इंसान की जान बचाने की कसम खाता है —वही अगर “जन्नत” के नाम पर मौत बांटने लगे, तो सवाल सिर्फ़ सुरक्षा का नहीं, समाज के विवेक का है।
क्योंकि ये रॉकेट लॉन्चर या AK-47 का नहीं, ये विचार का जहर है — जो इंटरनेट, यूनिवर्सिटी और धर्म की ओट में पल रहा है। आज अलफलाह यूनिवर्सिटी बंद है,लेकिन ऐसे कितने “अलफलाह” देशभर में खुले हैं — जहाँ न किताबें बोलती हैं, न टीचर पढ़ाते हैं…बस ब्रेनवॉश और कट्टरपंथ की दीवारें बढ़ रही हैं। दिल्ली ब्लास्ट ने हमें सिर्फ़ एक हादसा नहीं दिखाया, उसने हमें एक चेतावनी दी है —कि अगर हमने इस “विचार के ब्लास्ट” को नहीं रोका,तो अगली बार सिर्फ़ कार नहीं, पीढ़ियाँ फटेंगी।और तब, शायद पूछने वाला कोई नहीं बचेगा —

