> जिस कांग्रेस सरकार में भारत की 13,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पाकिस्तान ने कब्जा कर ली -->

Notification

×

Iklan

Iklan

जिस कांग्रेस सरकार में भारत की 13,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पाकिस्तान ने कब्जा कर ली

Friday, August 1 | August 01, 2025 WIB Last Updated 2025-10-02T04:50:51Z

 "जिस कांग्रेस सरकार में भारत की 13,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पाकिस्तान ने कब्जा कर ली... जिस कांग्रेस सरकार में 38,000 वर्ग किलोमीटर जमीन चीन ने हड़प ली... जिस कांग्रेस सरकार ने कच्चतीव द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया... और जिस कांग्रेस की सरकार में देश धर्म के आधार पर दो हिस्सों में बंट गया   आज उसी कांग्रेस के मुखिया राहुल गांधी मोदी से सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर ऑपरेशन सिंदूर के जरिये POK पाकिस्तान से वापस क्यों नहीं लिया? वो पूछ रहे हैं कि मोदी ने ट्रंप के सामने सरेंडर क्यों किया? जब पूरी दुनिया भारत की ताकत का लोहा मान रही है, तब राहुल गांधी और उनके साथी सबूत मांग रहे हैं?" यह सिर्फ एक ऐतिहासिक आकडे नहीं है , एक चार्जशीट है – उन सियासी गुनाहों की, जिनकी कीमत हमने अपनी ज़मीन खोकर चुकाई है। एक-एक करके कांग्रेस ने भारत के नक्शे को कैंची की तरह काटा और हर बार तर्क यही दिया – “शांति के लिए त्याग ज़रूरी है।” लेकिन सवाल ये है – क्या ये त्याग था या रणनीतिक मूर्खता? क्या ये शांति थी या राष्ट्रविरोधी समर्पण?



आज भले राहुल गाँधी ...हाथ में संविधान  लेकर संविधान बचने की बात करते है , लेकिन एक सच ये भी की इसी कांग्रेस की सहमति और कमजोर नेतृत्व ने भारत का पहला और सबसे बड़ा विभाजन धर्म के नाम पर किया । मुस्लिम लीग की मांगों के आगे घुटने टेककर भारत को दो हिस्सों में बांटा दिया गया जिन्ना और मुस्लिम लीग ने 'डायरेक्ट एक्शन डे' (16 अगस्त 1946)  का एलान किया और हजारों हिंदुओं की हत्या  की गयी ,इस विभाजन में अनुमानित 10 से 15 लाख लोगों की जान गई। लगभग 1.5 करोड़ लोग अपनी जमीन-जायदाद छोड़ने पर मजबूर हुए। भारत की सीमाएं खून से लाल हो गयी , ट्रेनें लाशों से भरी भर गयी , और मानवता शर्मसार हुई। और आज तक पाकिस्तान की आतंकवाद नीति का सामना देश कर रहा है ।  और आज वही कांग्रेस उसी पकिस्तान के साथ कड़ी नज़र आती है ,  सेना से  सावल पूछकर ..... 


अगर कांग्रेस 1947 में विलय के बाद निर्णायक सैन्य कार्रवाई करती, अनुच्छेद 370 का स्थायी समाधान करती और पाकिस्तान की नापाक चालों का कड़ा जवाब देती, तो कश्मीर आज जन्नत की तरह शांत होता। पर कांग्रेस की 'समझौता और वोट बैंक' नीति ने इस भूमि को दशकों तक खून और आतंक का मैदान बना दिया। (स्रोत: Balraj Madhok, Kashmir: The Storm Centre of the World, 1990)  और आज वही कांग्रेस मोदी से सवाल पूछ रही है की pok कब  वापस लोगे .. 

 

"कांग्रेस के शासनकाल में बार-बार भारत की सीमाएं कमजोर हुईं।  1962 का चीन युद्ध कांग्रेस की नाकामी का सबसे बड़ा सबूत है। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा दिया, लेकिन जब चीन ने हमला किया तो भारतीय सेना की  न तैयारी थी, न हथियार। परिणाम? 38,000 वर्ग किलोमीटर अक्साई चिन चीन के कब्जे में चला गया। (सोर्स: Ministry of Defence India, 1962 War Reports) कांग्रेस ने युद्ध के दौरान न केवल सेना को कमजोर छोड़ दिया बल्कि हार के बाद कोई मजबूत कूटनीतिक कदम  भी नहीं उठाया। यह सरेंडर का सबसे बड़ा सबूत है कि सरकार ने खोई जमीन वापस पाने की कोशिश तक नहीं की। लेकिन आज वही कांग्रेस मोदी को सरेंडर करने का सर्तिफेक्ट दे रही है .... 


वर्ष 1947-48 के भारत पाकिस्तान युद्ध में  जब पाकिस्तान ने  कबायलीयों  कश्मीर में हमला किया ....तो . जवाब में हिन्दुस्तान की सेना मुज़फ्फराबाद  तक पहुच गयी थी... भारतीय सेना ने निर्णायक बढ़त बनाई थी। हमरी सेना जीत रही थी .... लेकिन नेहरु  युद्धविराम के लिए  संयुक्त राष्ट्र’ चले गए ..  जिसका नतीजा ये हुआ की ? दोनों देशो के बीच  सीज़फायर हुआ। और लगभग 13,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में चला गया .जिसे आज POK कहा जाता है।(सोर्स: UN Records on Indo-Pak Ceasefire 1948) .. युद्ध रोकने का निर्णय पंडित नेहरू का था, जिन्होंने मामला संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर स्थायी समस्या खड़ी कर दी। यह कांग्रेस की कमजोर नीति का नतीजा था । यानी POK की समस्या का बीज  की और ने  नहीं  कांग्रेस ने ही बोया। था ...कांग्रेस सरकार बातचीत का रास्ता चुनती रही।  और देश के टुकडो में  बांटता  रहा 

  

1974 में इंदिरा गांधी सरकार ने कच्चतीव द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया, बिना संसद की मंजूरी के। (सोर्स: Government of India Treaty of 1974, MEA Archives)। यह वही द्वीप था जहां भारतीय मछुआरे सदियों से मछली पकड़ते आए थे। कांग्रेस की इस गलती का खामियाजा आज भी हजारों भारतीय मछुआरे भुगत रहे हैं। कांग्रेस का इतिहास बताता है कि जब भी सीमाएं बचाने की बारी आई, इस पार्टी ने झुकना ही चुना। और आज वही पार्टी मोदी सरकार को सरेंडर का पाठ पढ़ाने की ढीठ राजनीति कर रही है।" इतिहास में बार-बार सरेंडर करने वाली कांग्रेस आज मोदी सरकार से सबूत मांगती है और राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल उठाती है। जिन्होंने जमीन गंवाई, वही आज देशभक्ति के ठेकेदार बने हैं। (सोर्स: Parliamentary Debates, Defence Archives) , लेकिन जब बात उनकी अपनी नाकामियों की आती है तो वे या तो चुप्पी साध लेते हैं या इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं।


"पुलवामा हो या बालाकोट एयरस्ट्राइक, हर बार जब भारत ने आतंकवाद पर करारा प्रहार किया, तो  सबूत मांगने में सबसे आगे कांग्रेस रही। जब भारतीय सेना ने POK में आतंकी ठिकाने उड़ाए, तो यही कांग्रेस पूछ रही थी  – कितने मरे? कौन मरा? पाकिस्तानि  गिद्धों की तरह कांग्रेस भी सबूतों पर टूट पड़ी।"


और अब जब ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान खुद युद्धविराम के लिए गिड़गिड़ाया,  और युद्ध विराम हुआ तो  अब भी कांग्रेस सवालों की वही पुरानी राजनीति खेल रही है – "कितने विमान गिराए? कौन मरा? क्या सबूत है कि पहलगाम हमला पाकिस्तानियों ने किया?" यह वही मानसिकता है जिसने देश की सुरक्षा को हमेशा कमजोर किया। इतिहास में बार-बार सरेंडर करने वाली कांग्रेस आज मोदी सरकार से सबूत मांगती है और राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल उठाती है। जिन्होंने जमीन गंवाई, वही आज देशभक्ति के ठेकेदार बने हैं। जिन्होंने युद्धविराम कराके दुश्मन को बचाया, वही अब युद्ध के नतीजों पर सवाल उठाते हैं।  यह दोहरा चरित्र जनता को धोखा देने की राजनीति का नमूना है।


ये वही कांग्रेस है जिसने स्वतंत्र भारत में एकता और अखंडता को मजबूत करने की बजाय राज्यों का पुनर्गठन भाषा के आधार पर किया। 1953 में आंध्र प्रदेश का गठन पहला उदाहरण था। 1956 में 'राज्यों का पुनर्गठन अधिनियम' लाकर कांग्रेस ने पूरे देश को भाषाई आधार पर टुकड़ों में  बाँट दिया । (स्रोत: B. Shiva Rao, India's Constitution in the Making, 1968) इससे राष्ट्रीय पहचान कमजोर हुई और क्षेत्रीय भाषावाद बढ़ा। 1960 में महाराष्ट्र और गुजरात का विभाजन, 1966 में हरियाणा का निर्माण और 1971 में मेघालय का गठन – ये सभी निर्णय राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित थे। कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय एकता की कीमत पर वोटबैंक बनाने के लिए इस्तेमाल किया। भाषाई आधार पर राज्यों का निर्माण क्षेत्रीय दलों की बढ़ती ताकत का कारण बना। आज भी दक्षिण भारत में हिंदी विरोधी आंदोलन और अन्य राज्यों में भाषाई अलगाव की भावना कांग्रेस की इस नीति की देन है। यह कांग्रेस का एक और 'सॉफ्ट सरेंडर' था – भारत की सांस्कृतिक एकता के खिलाफ।


कांग्रेस ने आजादी के तुरंत बाद जाति-आधारित राजनीति को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया। 1950 में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान अस्थायी तौर पर किया गया था। लेकिन कांग्रेस ने इसे स्थायी राजनीतिक टूल बना दिया। (स्रोत: Christophe Jaffrelot, India's Silent Revolution, 2003)


जाति जनगणना, जातिगत तुष्टिकरण और 'मंडल राजनीति' का समर्थन कर कांग्रेस ने समाज को जातियों में बांटने का काम किया। हर चुनाव में वोट बैंक साधने के लिए जातिगत आरक्षण को बढ़ाया गया। नतीजा: हिंदू समाज भीतर से कमजोर हुआ, सामाजिक सद्भाव टूटा और विकास के मुद्दे पीछे छूट गए। जाति आधारित राजनीति ने प्रतिभा और योग्यता का गला घोंटा।   यह कांग्रेस का एक और 'राष्ट्रीय सरेंडर' है – सामाजिक एकता के  बलिदान। का  और आज उसी जाती की राजीनीति को हवा राहुल गाँधी दे रहे है ... जिसे उनसे पहले उन्ही परिवार ने किया ....... 


आजादी के बाद से कांग्रेस का रिकॉर्ड देखिए – धर्म के आधार पर विभाजन, , भाषा के आधार पर बंटवारा, जातिगत जहर, और  अल्पसंख्यक तुष्टिकरण,   हर मोड़ पर कांग्रेस ने राष्ट्रहित की जगह वोट बैंक को चुना। नतीजा यह हुआ कि भारत बार-बार टूटा, समाज खंडित हुआ और दुश्मनों का हौसला बढ़ा। आज जो लोग मोदी सरकार से 'सरेंडर' का हिसाब मांगते हैं, उन्हें पहले अपने सात दशकों के काले इतिहास का हिसाब देना चाहिए। कांग्रेस का इतिहास समझौते, हार, सौदेबाजी और सरेंडर का है। यही सच्चाई है जो देश की जनता को जाननी चाहिए। ....... वैसे वापकी राय क्या है ...  आप जरुरु बताइए ...  नमस्कार 



×
Latest Stories Update