अयोध्या में हुए बाबरी विध्वंश के ३३ साल बाद एक और बाबरी मस्जिद की नीव रख दी गयी है .... इस बार जगह उत्तर प्रदेश का अयोध्या नहीं , बल्कि पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद है ... वही मुर्शिदाबाद जहाँ वक्फ कानून के नाम पर सैकड़ो घर जला दिए गए ..सैकड़ो परिवारो को पलायन के लिए मजबूर होना पडा ! आज उसी मुर्शिदाबाद में एक और बबारी की नीव रख दी गयी है. जिस विवाद को एक दस्तावेज़ मानकर देश आगे बढ़ चुका था, उसे भुला दिया गया था, उसे कुछ लोग फिर से जिन्दा करने की कोशिश कर रहे हैं। अब सवाल इस बात का है की जिस विवाद को सुलझाने में इस देश को 500 साल लग गए... जिस नाम ने देश को दशकों तक दंगों की आग में झोंका... आज पश्चिम बंगाल उसी इतिहास को फिर से क्यों दोहराना चाहता है?
हैरानी की बात ये है की जिस 6 दिसंबर को अयोध्या में विवादित ढांचे का विध्वंश किया गया उसी तारीख पर मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में एक नई मस्जिद की नींव रखी गई —जिसे नाम दिया गया ‘बाबरी मस्जिद और इसे अंजाम दिया —TMC से सस्पेंडेड MLA हुमायूं कबीर ने। वही हुमायूं कबीर, जो कभी कांग्रेस में रहा तो कभी .बीजेपी में , टीएमसी भी उसका ठिकाना था ..लेकिन अब वो टीएमसी से सस्पेंड हो चुका है... हुमायूं कबीर खुलेआम कह रहा है की कि वो अपनी नई पार्टी बनाएँगे और 135 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। यानि आज ये जो कुछ भी पश्चिम ब्नागल में हो रहा है ..नयी मस्जिद की नीव रखी जा रही है. विदेशो से मौलना बुलाये जा रहे है , वो सर्फ एक ढोंग है .. असली मकसद तो सत्ता हासिल करना है .. पर क्या ऐसे धर्मं के नाम पर सत्ता की सीढियाँ चढ़ना सही है ....क्या बाबर के नाम पर बंगाल में मुस्लिम वोटों को एकजुट करने का ये तरीका सही है .ये देश में नफरत की एक नयी दीवार खडी की जा रही है ! आज बाबरी और बाबर का वायरस देश में काफी तेजी से फैलता जा रहा है और कट्टरपंथियों को संक्रमित कर रहा है।
परेशानी किसी इबादतगाह से नहीं है... भारत में हज़ारों मस्जिदें, मंदिर, गुरुद्वारे मौजूद है. परेशानी तो उस नाम से है , जिसने हिंदुस्तान की आस्था को कुचला, हजारों मंदिरों को खंडहर में तब्दील कर दिया। और आज जब भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित कर रहा है, तब बंगाल में उसी विदेशी हमलावर के नाम का महिमामंडन हो रहा है ? क्या भारत में मस्जिदों के लिए नामों की कमी पड़ गई थी? या फिर मकसद सिर्फ 'बहुसंख्यकों की भावनाओं' को ठेस पहुँचाना है? सवाल प्रशासन की चुप्पी पर भी है। क्योकि जिस राज्य में 'जय श्री राम' का नारा लगाने पर पुलिस सक्रिय हो जाती है, जहाँ सरस्वती पूजा के लिए हाई कोर्ट जाना पड़ता है . वहां एक विवादित ढांचा खड़ा करने की घोषणा पर सरकार मौन हो जाती है ? क्या ये ममता सरकार के 'तुष्टिकरण मॉडल' का हिस्सा है। या सत्ता में बने रहे की एक और सियासी चाल है ?
जिस मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद की नीव राखी गयी है उस जिले की आबादी लगभग 71 लाख जिसमे से करीब 66% मुस्लिम,और 33% हिंदू है .जो की पूरे पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी का लगभग 27% है यानी जिस जमीन पर ये नया “बाबरी मस्जिद” प्रोजेक्ट खड़ा किया जा रहा है, वो पहले से ही मुस्लिम-बहुल एरिया ..और राजनीतिक रूप से हाई-कॉम्पिटिशन वाला इलाका है। और यही राजनीती है जो आज एक नए विवाद की नीव डाल रही है .. गल्लती जनता की नहीं है नेताओं की जो ओछी राजनीती के लिए ..... जनता के बीच नफरत की नीव खडी कर देते है ? मै फिर कह रहा हूँ .. विरोध किसी मस्जिद का नहीं है. विरोध उस नाम का जिसने भारत की संस्कृति को चोट पहुचाई ,और आज उसी का महिमा मंडान किया जा रहा है...
मुर्शिदाबाद सिर्फ एक ज़िला नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र का एक ऐसा बैरोमीटर (Barometer) है, जो बताता है कि जब राजनीति और पहचान का कॉकटेल बनता है, तो देश का सामाजिक ताना-बाना बिखर सकता है।....और ऐसे उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है. फिर चाहे अयोध्या हो का राम मंदिर हो जिसे बाबर ने 1528 में तोड़कर मस्जिद बनवाई हो या फिर 1669 में औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर ज्ञानवापी बनवाई गयी हो ? यहाँ तो मंदिर के अवशेष आज भी मस्जिद की दीवारों में दिखाई देते हैं। कुछ यही पैटर्न भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में भी दिखा जब 1670 में औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह बना दी गई । और आज यह मामला भी अदालत में है। अयोध्या, काशी, मथुरा - तीनों विवादों के नाम बाबर,औरंगजेब से जुड़े हुए .और आज मुर्शिदाबाद में 'बाबरी' की नींव रखने वालों ने यह सब जानते हुए भी, वही नाम चुना? जिसने भारत के दिल में जख्म दिए है ? आज भी भारत की सभ्यता के दर्जनों पवित्र स्थल, इतिहास के बोझ तले दबे हैं। आज सिर्फ राजनीती चमकाने के लिए मुर्शिदाबाद में जानबूझकर एक नया ढाँचा बनाया जा रहा है, और उसे बाबर का नाम दिया जा रहा है।
TMC जानती है कि हुमायूं कबीर की ये चाल उसके वोट चुरा सकती है, लेकिन TMC ये भी जानती की जिस मुद्दे को लेकर हुमायू ,नारेतीव बबाने की कोशिश कर रह है उसे खिलाफ जाना उसे मुश्किल में ड़ाल सकता है उनका वोट बैंक नाराज हो सकता है जिसके दम पर वो दशको से सत्ता में है ? यानी, हुमायूं कबीर का यह दाँव, टीएमसी के तुष्टिकरण मॉडल को ही एक 'ब्लैकमेल' कर रहा है और TMC इसे चाह कर भी काउंटर नहीं कर पा रही है ? पश्चिम बंगाल की राजनीति में तुष्टिकरण की जो इमारत ममता बनर्जी ने खड़ी थी, उसका सबसे मज़बूत पिलर,अब ढह रहा है ।
विपक्ष आरोप लगा रहा है कि ये सब “मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण” की स्क्रिप्ट है – जिसे TMC हुमायूं कबीर के साथ मिलकर लिख रही है! और tmc कह रहा रही की हुमायूं कबीर बीजेपी का एजेंट है ? यानी एक मस्जिद की नींव से चार तरह की राजनीति एक साथ खेली जा रही है —हुमायूं कबीर के लिए ये लॉन्चिंग पैड है, TMC के लिए इमेज मैनेजमेंट,और BJP के लिए पोलराइजेशन का मौका,और बाकी विपक्ष के लिए ममता सरकार को घेरने का नया मुद्दा। ममता बनर्जी क्यों चुप है इसे भी समझिये -पश्चिम बंगाल में करीब 30% मुस्लिम वोटबैंक है, जो किसी भी सरकार को बनाने या गिराने की ताकत रखता है। और ये वोट अभी तक ममता बनर्जी के साथ ही था... लेकिन हुमायू कबीर ने इसमें सेध लगा दी .ये 30% मुस्लिम वोटबैंक का ही डर है, जिसने प्रशासन के हाथ बांध रखे हैं। शायद इसीलिए... जब मुर्नसिदाबाद में एक नयी बरबरी की नीव राखी गयी . तो न पुलिस ने रोका, न प्रशासन ने नोटिस भेजा, और कोर्ट ने भी इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया ....
मुर्शिदाबाद में रखी गई बाबरी की ईंट, सिर्फ जनता के बीच एक दीवार खड़ी नहीं कर रही... यह बंगाल को भारत की मुख्यधारा से अलग कर रही है। जब एक लोकतांत्रिक देश में, एक समुदाय को खुश करने के लिए दूसरे समुदाय के ऐतिहासिक जख्मों को कुरेदा जाता है, तो नतीजे भयानक होते हैं। 1947 में मुर्शिदाबाद ने विभाजन का दंश देखा था। 2025 में यह बाबरी का जिन्न देख रहा है। सवाल यह है कि क्या बंगाल एक और 'कश्मीर' बनने की राह पर है? या फिर वोट बैंक की यह राजनीति, राज्य को एक और विभाजन की ओर धकेल रही है? आज यह कहानी सिर्फ 'बाबरी' की नींव की नहीं है। यह कहानी है उस खतरे की, जो 1947 के विभाजन के बाद भी बंगाल में बना हुआ है। यदि मुर्शिदाबाद में कानून की आड़ में इतिहास को फिर से ज़िंदा किया जाता रहा, तो कल क्या होगा? इसका जवाब श्याद किसी के पास नहीं है ? “यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती…मुर्शिदाबाद का अगला अध्याय अभी लिखा जाना बाकी है।”
भारत…एक ऐसा देश जहाँ मंदिर सिर्फ आस्था के केंद्र नहीं —सभ्यता की स्मृति, इतिहास का अभिलेख, और राजनीति की धुरी हैं। यह कहानी सिर्फ ईंट और पत्थर की नहीं—यह कहानी है सत्ता, संघर्ष, और उन कानूनों की जिन्होंने भारत के मंदिरों की किस्मत बदल दी…और उन्हें कभी साम्राज्यों, कभी सरकारों, और कभी अदालतों की चौखट पर ला खड़ा किया।”
