क्या है इलेक्शन कमीशन का स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न..जिसने घुसपैठियों के दिल में डर..और नेताओं में खलबली मचा दी है? कौन है जो हिन्दुस्तान में रोहंग्यिया.और घुसपैठियों को पनाह दे रहा है ? और कैसे देश में अवैध घुस्पैतियों की संख्य दो करोड के पार हो गयी ? क्या ये सिर्फ महज एक आकडा है.या किसी बड़ी साजिश की संख्या जो भारत के चुनावी परिणाम और डेमोग्राफी दोनों बदल रही है....और क्या पश्चिम बंगाल नया बंगलादेश बनता जा रहा है .. रही है...चलिए इस विडियो में समझते है !
15 अगस्त 1947 — -को जब भारत आज़ाद हुआ, तो अवैध घुसपैठ देश की सबसे बड़ी चुनौती थी । देशभर में बांग्लादेश और पाकिस्तानी से बड़ी संख्या.में घुसपैठ हुई ..असम से लेकर बंगाल तक।और बिहार से लेकर यूपी तक न सिर्फ भारत की डेमोग्राफी बदली, बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी गंभीर सवाल खड़े हो गए । Home Ministry की कई रिपोर्टों, और 1964 की Dandekar Committee, में इस का जिक्र किया गया है की , कैसे देश में बड़ी संख्या में घुसपैठ हो रही है ...देश की डेमोग्राफी बदल रही है लेकिन वोट बैंक की राजनीति और सत्ता की चाहत ने इसे लगातार बढ़ने का मौका दिया।....
1947 से लेकर 2025 तक — देश ने 78 साल का इतिहास देखा है ,जिसमे 54 साल अकेले इस देश में कांग्रेस ने राज किया। नेहरू,से लेकर इंदिरा गाँधी तक , राजीव, से लेकर मनमोहन सिंह तक और सबका मकसद एक ही था .“वोट के लिए विभाजन,और सत्ता के लिए तुस्टीकरण..और इसी तुस्टीकरण की पोल्काटिक्स ने हिन्दुस्तान में एक नयी जमात को जन्म दिया जिसका नाम था घुसपैठिया समज..जो न सिर्फ देश के लिए नासूर बना बल्कि यही नासूर हिन्दुओं की आबादी को धीरे -धीरे निगलता रहा है ..हालत ऐसे हो गए की कई जगहों पर या तो हिन्दू पलायान कर गए .. या उन्हें ऐसा कंरने के लिए मजबूर किया गया .
असंम और बंगाल जैसे स्टेट आज इसी परेशानी को झेल रहे है ..जहाँ बढती घुसपैठ ने वहा की .. डेमोग्राफी ही बदल दी है .और अब जब पश्चिम बंगाल में इन्ही घुस्पैतियों की पहचान के लिए .इलेक्शन कमीशन स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न ड्राईव चला रहा है ..तो तुस्टीकरण की राजनीती के लिए के लिए ममता बनर्जी जैसी मुख्यमंत्री इसका विरोध कर रही है ? सवाल इस बात का नहीं की है — स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न का विरोध किया जा रहा है ? सवाल तो इस बात का है ? की आखिर बंगाल में घुसपैठियों को बचाने के लिए भी रेलिया निकली जा रही है ? जो किसी भी देश या राज्य के लिए बेहद ही खतरनाक है ......
BSF की रिपोर्टें कहती हैं—की पिछले तीन सालों में 5,000 से अधिक अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत से वापस भेजा जा चुक है । जिनमे 2,688 लोग सिर्फ पश्चिम बंगाल की सीमा से पकड़े गए। लेकिन यह संख्या सिर्फ ‘पकड़े गए लोगों’ की है…इनमे वो लोग शामिल नही है ..जो बिना रिकॉर्ड के अंदर आये .. और यही पर बस गए .लेकिन अब स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न—यानि SIR शूरू होने के बाद..रोज़ाना 300–400 अवैध नागरिक खुद ही सरेंडर कर रहे हैं। ये सिर्फ़ आँकड़े नहीं—ये उस डर की आवाज़ है जो SIR की घोषणा के बाद पश्चिम बंगाल में सुनई दे रही है .
साल 2016 में गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में कहा था — कि भारत में लगभग 2 करोड़ अवैध बांग्लादेशी प्रवासी मौजूद हो सकते हैं। 2017 में गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दाख़िल किया था: जिसमे कहा था की भारत में 40,000 से अधिक Rohingya “illegal immigrants” हैं यह “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा” बन सकते हैं यह दिल्ली, जम्मू, हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना में सबसे ज्यादा मौजूद है ...
अवैध घुसपैठ, आज देश की सबसे बड़ी समस्या है, और बंगाल इसकी सबसे बड़ी प्रयोगशाला। जहाँ बंगलदेश से होने वाली घुसपैठ राज्य के डेमोग्राफिक ताने-बाने को बदल रही है। घुसपैठिये संगठित तरीके से . भारत का हिस्सा बनकर .चुनावी परिणाम बदल रहे है..ये घुसपैठ इतने संगठित तरीके से हो रही है . पकडे गए बांग्लादेशी घुसपैठियों पास से फर्जी आधार कार्ड, राशन कार्ड और पैन तकपकडे गए हैं, और ये सभी डाकुमेंट बंगाल के भीतर ही चन्द पैसो के लिए बन दिए जाते है.. पिछले 5 साल में NIA, ED, दिल्ली पुलिस, कर्नाटक, WB CID ने ऐसे दर्जनों रैकेट पकड़े जहाँ भारतीय दस्तावेज़ ₹500–₹3000 में मिल रहे थे। और इसके लिए एक पूरा सिंडीकेट काम करता है .. जो भारत में इसे अंजाम दे रहा है
जिस ? स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न, का ममता बनर्जी से लेकार राहुल गाँधी तक तुस्टीकरण की राजनीती के लिए विरोध कर रहे है. ये देश पहली बार नहीं हो रहा है
आज़ादी के बाद से नौवीं बार है ,जब देश में स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न हो रहा है अंतिम बार एसआईआर 2002-04 के बीच हुआ था .और अभी देश के 12 स्टेट में चल रहा है .SIR किसी की “नागरिकता” नहीं छीनता — SIR सिर्फ डुप्लीकेट वोटर की पहचान करता है ..यह चेक करता है कि जो वोटर लिस्ट में मौजूद है, वो सही पता, सही पहचान और सही उम्र वाला नागरिक है या नहीं। नागरिकता छीनने का अधिकार न Election Commission के पास है, न SIR किसी ऐसी प्रक्रिया से जुड़ा है।?
ये क्यों जरुरी इसे भी समझिये असम में जब NRC और SIR की प्रक्रिया हुई, तो 19 लाख से ज़्यादा ऐसे लोग थे जिन्हें “D-Voter” यानी Doubtful Voter की सूची में डाला गया .इसकी वजह थी ..इन वोटरों का सही पहचान साबित न कर पाना .. कुछ ऐसा बिहार में हुआ जहाँ SIR के दौरान 68 लाख D-Voter हटाए गए हैं. जिसका विरोध हुआ रैलियाँ निकाली गईं नैरेटिव भी बनाया गया कि—सरकार वोट कटवा रही है, गरीबों का नाम हटाया जा रहा है लेकिन…जब चुनाव हुए,
जनता ने इस नैरेटिव को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया।
जिस पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी SIR का विरोध कर रही है उस पश्चिम बंगाल में अंतिम बार SIR 2002 और 2004 के बीच हुआ था तब से लेकर अब तक,
पश्चिम बंगाल में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या में 66% की वृद्धि हुई है –और वोटरों की संख्या 4.58 करोड़ से बढ़कर 7.63 करोड़ हो गयी । यानी 3.05 करोड़ वोटर का इजाफ़ा। हुआ ..ये कोई सामन्य बढ़ोतरी नहीं है .. ये उस घुसपैठ का नतीजा है ..बांग्लादेश और म्यांमार से हो रही है.. सबसे चौंकाने वाली बात —सबसे ज्यादा वृद्धि उन्हीं ज़िलों में हुई जो बांग्लादेश बॉर्डर से लगे हैं।कई सीटों पर 20 साल में 80% से 105% तक वोटर वृद्धि दर्ज हुई है इस बढती जनसख्या के लिए अलग अलग पोलटिकल पार्टियों के अलग अलग तर्क है ? BJP का आरोप है कि TMC SIR का विरोध इसलिए कर रही है क्योंकि यह प्रक्रिया उन लाखों अवैध घुसपैठियों को मतदाता सूची से बाहर कर देगी जो उनका वोट बैंक हैं। ममता बनर्जी की नीतियाँ "मुस्लिम तुष्टीकरण" पर आधारित हैं, जिसके कारण बंगाल में अवैध घुसपैठ को बढ़ावा मिल रहा है। और बांग्लादेश से आकर "मुस्लिम घुसपैठिए" भारत में बस रहे हैं,
ममत बनर्जी के दर की असल वजह SIR नहीं है असली वजह तो वोट की राजनीती है ... इसे ऐसे समझिए—की पश्चिम बंगाल में कुल 294 विधानसभा सीटें हैं।
इनमें से 94 सीटें ऐसी हैं जो सीधे बांग्लादेश बॉर्डर से लगती है यानि—पूरे बंगाल की राजनीति का 32% हिस्सा उन इलाकों में है, जहाँ पिछले 20–22 साल में
20% से 45% तक वोटर बढ़े हैं। अगर SIR इन वोटों में 5–10% भी घटा देता है, तो 10–15 साल की राजनीतिक बढ़त खत्म हो जाएगी। और इसी बात का दर ममता बनर्जी को है
स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न सिर्फ मतदाता सूची का सुधार नहीं…ये उस बीमारी का इलाज है जो 78 सालों से भारत की नसों में फैलती रही। जिसने देश की डेमोग्राफी बदली… और चुनावी नतीजे भी। आज सवाल सिर्फ एक है…क्या देश अपने असली नागरिकों को पहचान पाएगा? या सत्ता की भूख में पाले गए घुसपैठिए, भारत का भविष्य तय करते रहेंगे? इलेक्काशन कमीशन का ये मिशन —सिर्फ़ एक सुरक्षा ऑपरेशन नहीं ये , यह एक ऐसा मिशन है जिसने सियासत से लेकर घुसपैठियों तक हलचल बढ़ा दी है ...क्योंकि जहाँ सरकार घुसपैठियों को “डिटेक्ट” कर रही है, वहीं विपक्ष “वोट बैंक” के खोने से डर सता रहा है। यानी —👉 घुसपैठियों को डर है, उनकी पहचान उजागर होने का।👉 और सियासत को डर है, अपने वोट बैंक खोने का। जिसके दम पर सत्ता की सीढियाँ चढ़ते है ? वैसे आप की रे क्या है sir को लेकर .. हमें लिखकर बता सकते है

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