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बिहार की सियासत का वो लड़का...जो 31 साल की उम्र में सांसद बना.

Wednesday, November 19 | November 19, 2025 WIB Last Updated 2025-11-20T06:53:50Z

 बिहार की सियासत का वो लड़का...जो 31 साल की उम्र में सांसद बना... 42 की उम्र में मोदी का मंत्री  और 43 साल की उम्र में बिहार की सियासत में एक नया इतिहास लिख चुका है जिसकी गूंज पटना से दिल्ली तक सुनाई दे रही है। नाम है चिराग पासवान? अब वो सिर्फ ‘मोदी का हनुमान’ नहीं बल्कि बिहार का नया गेमचेंजर बन चुके हैं। .. 



ये कहानी है उस चिराग पासवान की—है जिनके पिता की मौत के एक साल बाद .उनके के ही चाचा .. सत्ता के लिए चिराग के सबसे बड़े दुश्मन बन गए। ये कहानी है उस चिरग पासवान की .जिसे हारने के लिए उनके अपनों ने ही तख्तापलट कर दिया .उनके चाचा, पशुपति पारस, ने उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया, LJP को तोड़ दिया और जनता के सामने उन्हें ‘कमज़ोर’ साबित करने की कोशिश की। सबने कहा — ‘ये लड़का खत्म हो चुका है। और यही वो पल था… जहाँ से चिराग की कहानी ने एक नया मोड़ ले लिया ? चिराग ने हार नहीं मानी। और वो कर दिखया जो सियासत में कम ही देखने को मिलता है ? 


चिराग ने ये साबित कर दिया की मुश्किलें चाहे कितनी क्यों न हों...हर बाधा को तोड़कर एक नया रास्ता बनाया जा सकता है। और चिराग ने अपना रास्ता खुद बनाया। और यही रास्ता — उन्हें उस मुकाम तक लेकर आया है ...  जहाँ अब उनके चर्चे  सिर्फ बिहार तक सिमित नहीं है .. अब उनके कामयाबी की बाते पूरे देश में हो रही है ? अब सवाल यह नहीं कि चिराग पासवान जीत गए। सवाल तो ये है की — उनकी भूमिका क्या होगी? क्या चिराग और नीतीश कुमार साथ काम कर पाएंगे? क्या वो कैबिनेट में शामिल होंगे?  या फिर अपने रास्ते पर चलकर बिहार की राजनीति में नया अध्याय लिखेंगे? 


रामविलास पासवान... बिहार की राजनीति का वो नाम  थे ? जिसे लोग ‘दलितों का मसीहा’ कहते थे।  जिन्हें ‘मौसम वैज्ञानिक’ कहा जाता था। जिन्होंने मंडल-कमंडल राजनीति के बीच अपना दलित और बहुजन वर्कर बेस कभी टूटने नहीं दिया। वो राजनीति नहीं करते थे — वो माहौल पढ़ते थे। और यही 'पढ़ना' — उन्होंने चिराग को भी सिखाया था। रामविलास पासवान जाते-जाते एक विरासत दे गए —विचार की, रणनीति की, और जनता की धड़कन को पहचानने की। आज वही धड़कन… चिराग की सबसे बड़ी ताकत है। और आज चिराग में भी ये दीखता भी है ...आज चिराग केवल LJP का नेता नहीं हैं। वह बिहार के नए गेमचेंजर, बन चुके हैं  जिनकी हर चाल, हर निर्णय पूरे  बिहार और राष्ट्रीय राजनीति पर असर डाल रही है।....


जब चिराग ने टूटी  LJP को फिर से खड़ा करने की ठानी, तो यह सिर्फ भावना की लड़ाई नहीं थी — यह संख्या और रणनीति का खेल था। यह राजीनीति अस्तित्व की लडाई थी . 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग NDA का हिस्सा तो थे…पर नीतीश कुमार को चुनौती देना उन्होंने चुना। उन्होंने  चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया और नीतीश कुमार के नेतृत्व में गठबंधन स्वीकार नहीं किया ..उनकी पार्टी  ने 137 सीटों पर उम्मीदवार उतारे , ज्यादातर उन सीटो को चुना जहाँ JDU लड़ रही थी। इसका परिणाम ये हुआ की  इस चुनाव में जेडीयू सिर्फ 43 पर सिमट गयी ..ये हार सिर्फ नीतीश की नहीं थी —ये चिराग का ‘मास्टरस्ट्रोक’ था —जिसने बिहार विधानसभा का रंग बदल दिया था। भले चिरग को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली , लेकिन उन्होंने नितीश का खेल जरुर बिगड़ दिया ? चुनाव बाद BJP के कई नेताओं ने भी माना कि LJP ने जेडीयू के वोट काटे और नुकसान किया। चिराग ने चुनाव जरुर अलग लड़ा लेकिन ..बीजेपी-विरोधी नहीं बने। ... 


2020 की हार के बाद चिराग भी ये समझ गए .. अकेले बिहार जीतना इतना आसान नहीं है ..चिराग ने उन्होंने NDA गठबंधन के साथ हाथ मिला लिया और अकेले लड़ने के बजाय nda के साथ मिलकर लड़ने का फैसल किया ...पर इस बार उनकी वापसी किसी के दबाव में नहीं — उनकी ताक़त और जनता के विश्वास के बदले हुई।  अब वो ‘नंबरी पार्टनर’ नहीं —बल्कि  X-Factor बा चुके थे.  2024 के लोकसभा चुनाव में, चिराग की पार्टी LJP (रामविलास) ने उन 5 सीटों पर चुनाव लड़ा, और  5 में से 5 सीटें जीत ली ! इस 100% स्ट्राइक रेट ने साबित कर दिया कि चिराग अब “नंबर 2 पार्टनर” नहीं हैं, बल्कि पूरी तरह से “X‑Factor” खिलाड़ी बन चुके हैं। उनकी पोज़िशन अब बिहार में सिर्फ ‘साइड पार्टनर’ की नहीं… बल्कि एक मुख्य खिलाड़ी की हो चुकी है।  


लेकिन ये तो सिर्फ ट्रेलर था  2025 का बिहार विधानसभा चुनाव — जिसे कई लोग नीतीश बनाम तेजस्वी का मुकाबला मान रहे थे। तब चिराग पासवान ने 66%  स्ट्राइक रेट के साथ 29 में से 19 सीटें जीतकर बिहार की राजनीति में इतिहास रच दिया . लोग हैरान थे कि LJP ने 29 में से 19 सीटें कैसे जीत लीं। क्योकि 29 सीटों पर लड़कर 19 सीट जीत लेना —वो भी तब, जब कोई दो साल पहले कह रहा था कि ‘ये लड़का खत्म हो चुका है’ —यह सिर्फ जीत नहीं थी… ये “विश्वास की वापसी” थी। बिहारियों ने सिर्फ वोट नहीं डाला बल्कि इसे चिराग की वापसी का चुनाव बना दिया।  


अब सवाल ये नहीं — कि चिराग पासवान जीत गए हैं…अब तो सवाल ये  है — वो कहाँ बैठेंगे?  दिल्ली में  या फिर बिहार में ! सवाल तो इस बात का भी है ? क्या चिराग पासवान और नीतीश कुमार साथ काम कर पाएंगे? क्या वो नीतीश सरकार में हिस्सा लेंगे? या फिर चिराग भी कभी कहेंगे —मेरा लक्ष्य सिर्फ मंत्री बनना नहीं है... मैं बिहार के मुख्यमंत्री का चेहरा बनना चाहता हूँ?  लेकिन हकीकत तो ये है दिल्ली में BJP लीडरशिप के सामने चिराग ने कभी CM की मांग नहीं रखी। वो एक ही लाइन कहते हैं—मुझे  जहां रखेंगे, वहां चलूँगा…बस बिहार मजबूत होना चाहिए।


BJP ये जानती है की  66% स्ट्राइक रेट के साथ 19 सीटे जीत लेना .... इतना आसान नहीं है ... और वो भी तब .. जब कुछ  पहले ही उनकी पार्टी टूटी थी. और उन्हें उनके पिता की पार्टी से निकलकर फेक दिया गया था ..लेकिन चिराग ने ये कर दिखया और यही वजह है कि चिराग अब सिर्फ “एनडीए पार्टनर” नहीं बल्कि  Power Axis बन चुके हैं। चिराग की सबसे बड़ी जीत  ये नहीं कि उन्होंने 19 सीटें जीत लीं…ये भी नहीं है कि बीजेपी अब उन्हें सबसे बड़े दलित चेहरे की तरह देख रही है…सबसे बड़ी जीत तो ये है—की बिहार की जनता  को चिराग में फिर से रामविलास पासवान दिखने लगे।


हर कदम पर चिराग ने यह दिखाया कि सत्ता केवल भाषण और लोकप्रियता से नहीं आती, बल्कि यह रणनीति, अनुशासन और जनता के विश्वास से बनती है। और इसी रणनीति ने उन्हें 43 साल की उम्र में बिहार की राजनीति में एक नया इतिहास लिखने का मौका दिया। अब वे सिर्फ सांसद या मंत्री नहीं हैं। वे बन चुके हैं बिहार के नए गेमचेंजर, जिनकी हर चाल और हर निर्णय पूरे देश की राजनीति में सुनी और समझी जा रही है।


लेकिन असली कहानी यहाँ से और दिलचस्प हो जाती है—क्योंकि 2025 की इस जीत ने सिर्फ एक नेता को मजबूत नहीं किया…इसने बिहार की राजनीति का पावर-सेंटर ही बदल दिया। अब पहली बार ऐसा हुआ कि— JDU सत्ता में है बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन असल चाबी… चिराग के हाथ में है। और यही वो जगह है जहाँ बिहार की राजनीति एक नए मोड़ पर खड़ी है। राजनीति, परिस्थितियों का खेल है। आज चिराग पासवान की कुर्सी कोई छोटा माइलस्टोन नहीं —ये उस विरासत का प्रतीक है जिसे उन्होंने अपने संघर्ष से जीता है  आज नीतीश सरकार बनाने के लिए जिस सहारे की जरुरत है ...वो चिराग पासवान ही है ..


आज ना तो दिल्ली चुप है, और ना ही पटना। दोनों जगह यही सवाल है — क्या बीजेपी उन्हें वो सम्मान देगी, जिसका वो दावा करते हैं? या फिर चिराग सिर्फ सहयोगी मंत्री बनकर राह जायेंगे . इतिहास गवाह है की  पासवान परिवार ने बिहार की जनता को कभी निराश नहीं किया। रामविलास पासवान ने बिहार की नब्ज समझकर राजनीति की धारा मोड़ी थी। और आज — चिराग वही रास्ता नए तरीके से तय कर रहे हैं। लेकिन कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है। क्योंकि सियासत में — आखिरी पन्ना हमेशा जनता लिखती है।  ये चुनाव…सिर्फ  एक सफर का पड़ाव था। और वो सफर अभी जारी है।” आप क्या सोचते हैं? क्या चिराग पासवान बिहार के अगले मुख्यमंत्री बनेंगे? या उनकी मंजिल अभी और आगे है?



 


 

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