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ऐसे तैयार होता है अरसा

Saturday, November 24 | November 24, 2018 WIB Last Updated 2021-01-22T11:16:55Z

देहरादून, दीपिका नेगी। गढ़वाल में शादी-ब्याह जैसे खुशी के मौकों पर मेहमानों को कलेऊ (पारंपरिक मिठाई) देने की अनूठी परंपरा है। असल में कलेऊ मिठाई मात्र न होकर अपनों के प्रति स्नेह दर्शाने का भाव भी है। इसलिए गढ़वाल के पर्वतीय अंचल में पीढ़ियों से कलेऊ देने की पंरपरा चली आ रही है। विवाह की रस्म तो इस सौगात के बिना पूरी ही नहीं मानी जाती। कलेऊ में विभिन्न प्रकार की मिठाइयां होती हैं, जिन्हें विदाई के अवसर पर नाते-रिश्तेदारों को दिया जाता है। इनमें सबसे लोकप्रिय है 'अरसा' और 'रोट'। इन्हें आप एक बार चख लें तो ताउम्र इनका जायका नहीं भूलने वाले। खास बात यह कि अरसा और रोट महीनों तक खराब नहीं होते।


ऐसे तैयार होता है अरसा.
अरसा बनाने में महिला और पुरुषों की बराबर भागीदारी होती है। अरसा तैयार करने के लिए गांवभर से महिलाओं को भीगे हुए चावल कूटने के लिए बुलाया जाता है। चावल की  लुगदी बनने के बाद गांव के पुरुष इसे गुड़ की चासनी में मिलाकर मिश्रण तैयार करते हैं। जायका बढ़ाने के लिए इसमें सौंफ, नारियल का चूरा आदि भी मिलाया जाता है। इसके बाद छोटी-छोटी लोइयां बनाकर उन्हें तेल या घी में तला जाता है। कहीं-कहीं अरसों में पाक लगाने की परंपरा भी है। इसके लिए पके हुए अरसों को गुड़ की चासनी में डुबोया जाता है।
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