बिहार की राजनीति में चराग पासवान के एक ऐलान ने सियासी तूफ़ान ला दिया है ! जो चिराग पवन खुद को मोदी का हनुमान कहते है , अब वही चिराग पासवान बिहार में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत कड़ी कर चुके है ! चिराग पासवान की एक सियासी चाल ने बीजेपी और नितीश दोनों को मुश्किल में दाल दिया है !!! अब बीजेपी न चिरग बैर कर पर रही और न ही नितीश को छोड़ पा रही है ! चिरग ने कहा की वो बिहार सभी 243 सीटो पर चुनाव लड़ेंगे, ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने २०२० में बिहार की १३५ सीटो पर चुनाव लादे थे /// ये बयान सिर्फ चिरग की रणनीति नहीं, बल्कि पूरे एनडीए के लिए सिरदर्द है। बीजेपी अब दो तरफ फँसी हुई है—एक तरफ़ नीतीश कुमार, जिनकी पार्टी जेडीयू पहले ही 2020 में आधी रह गई थी। दूसरी तरफ चिराग, जिनका अकेले का असर इतना है कि पूरे समीकरण बिगाड़ सकते हैं। बीजेपी दोनों को साथ रखना चाहती है, लेकिन दोनों ही गठबंधन में अपनी-अपनी शर्तों के साथ रहना चाहते है .....
चिराग का ये कहना कि वो किसी आरक्षित सीट से नहीं, जनरल सीट से लड़ेंगे—यानी message साफ़ है— चिराग अब सिर्फ़ दलितों के नहीं, पूरे बिहार के नेता बनना चाहते हैं।वो खुद को किसी जाति या वर्ग में नहीं बांधना चाहते। वो सीधा जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहे है , और पूरे बिहार को टारगेट कर रहे हैं।
ये वही चिराग हैं जिन्होंने 2020 में बिहार की १३५ सीटो पर चुनाव लड़कर नीतीश की हवा निकाल दी थी। खुद भले ही सिर्फ़ एक सीट जीते, पाए लेकिन चुनाव का पूरा गुना गणित हिला दिया।था तब नितीश की पार्टी 71 सीटो से घटकर 43 पर आ गईं। और अब चिराग फिर उसी रणनीति को तेज कर रहे हैं — लेकिन इस बार एक बड़े लक्ष्य के साथ। बिहार की राजनीति इस वक्त एक दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है — और इस मोड़ के केंद्र में हैं चिराग पासवान है । वो चिराग, जो कभी खुद को मोदी का हनुमान कहकर एनडीए की परछाईं में चलते थे, अब वही चिराग बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन में एक नई आग लगाने को तैयार दिख रहे हैं। 2025 विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने ऐसा पासा फेंका है, जिसने सिर्फ़ विरोधियों को ही नहीं, बल्कि सहयोगियों को भी असहज कर दिया है। जब उन्होंने मंच से ऐलान किया कि "मैं बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ूंगा," तो यह सिर्फ एक भाषण नहीं था — यह एक खुली चुनौती थी पूरे राजनीतिक सिस्टम को।
अब सवाल यह नहीं है कि चिराग पासवान कितनी सीटों पर लड़ेंगे — असली सवाल यह है कि इस बयान का मतलब क्या है? क्या यह एनडीए के भीतर सीटों की सौदेबाज़ी का दबाव है, या फिर मुख्यमंत्री बनने की एक अघोषित मंशा? चिराग के इस कदम से सबसे ज्यादा बेचैनी बीजेपी और जेडीयू में देखी जा रही है।
बीजेपी के लिए यह दोधारी तलवार है। वो न तो नीतीश कुमार को नाराज़ कर सकती है और न ही चिराग पासवान को दरकिनार कर सकती है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के टिकट पर जीत चुके हैं। यह वही चिराग हैं जो युवाओं में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, और जिनकी राजनीतिक शैली पारंपरिक जातिवाद से हटकर 'बिहार फर्स्ट' और 'बिहारी फर्स्ट' जैसे नए विमर्शों को जन्म दे रही है।
उधर, महागठबंधन यानी आरजेडी, कांग्रेस और वाम दल चिराग की बढ़ती सक्रियता को लेकर सतर्क हैं। तेजस्वी यादव, जो सामाजिक न्याय और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर जनता से संवाद बना रहे हैं, उन्हें भी पता है कि अगर चिराग ने शहरी और युवा वोटर को अपनी तरफ मोड़ लिया, तो पूरा समीकरण बिगड़ सकता है। 2020 में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन सरकार बनाने से चूक गई — और 2025 में चिराग अगर निर्णायक भूमिका में आते हैं, तो यह फिर एक बड़ा झटका हो सकता है।
राजनीतिक आंकड़े भी यह इशारा कर रहे हैं कि चिराग हल्के में लिए जाने लायक नहीं हैं। एलजेपी का वोट शेयर भले ही 6% के आसपास हो, लेकिन इसका प्रभाव चुनिंदा सीटों पर निर्णायक हो सकता है। अगर एनडीए उन्हें 30 सीटें देती है और
…और अगर चिराग पासवान इन 30 में से 10-15 सीटें जीत लेते हैं, तो वो न सिर्फ़ सरकार बनाने में किंगमेकर बन सकते हैं, बल्कि खुद को उपमुख्यमंत्री या यहां तक कि मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी पेश कर सकते हैं। और ये बात एनडीए के भीतर हर किसी को अच्छी तरह समझ आ रही है — तभी तो चिराग के एक बयान पर भाजपा-जदयू खेमे में हलचल मच जाती है।
अब सवाल उठता है कि क्या बीजेपी चिराग के इस गेमप्लान को पढ़ पा रही है? नीतीश कुमार, जो पल-पल गठबंधन बदलने के लिए मशहूर हैं, कहीं फिर कोई नया गणित न बिठा लें? वो चिराग को लेकर पहले ही सतर्क हैं, क्योंकि 2020 का घाव अभी भी ताज़ा है। और बीजेपी? वो बीच में फंसी है — एक तरफ़ उसका पुराना दोस्त नीतीश है, जो हर चुनाव में और ज़्यादा सीटों की मांग करता है, और दूसरी तरफ़ है चिराग, जो नई पीढ़ी के नेता की तरह पॉपुलर हो रहा है लेकिन सीटों के लिए ज़िद्दी भी दिख रहा है।
उधर महागठबंधन भी खुश नहीं बैठा है। तेजस्वी यादव समझते हैं कि चिराग का उदय सीधे-सीधे उनके वोट बैंक में सेंध लगा सकता है — खासकर युवाओं और दलित वर्ग में। कांग्रेस और वाम दल पहले ही संगठनात्मक रूप से कमजोर हैं, और अगर चिराग का नैरेटिव ‘विकास बनाम जाति’ की बहस छेड़ देता है, तो विपक्ष को भी अपने पत्ते दोबारा देखने पड़ सकते हैं।
और सबसे दिलचस्प बात ये है कि चिराग खुद को अब एक जातिवादी नेता की छवि से बाहर निकाल कर पूरे बिहार का प्रतिनिधि बताने की कोशिश कर रहे हैं। वो कहते हैं कि वो किसी आरक्षित सीट से नहीं बल्कि सामान्य सीट से लड़ेंगे। यानी अब वो रामविलास पासवान के बेटे नहीं, बल्कि “बिहार के बेटे” की भूमिका में दिखना चाहते हैं। यही वजह है कि उनके भाषणों में अब भावनात्मक अपील, विकास का रोडमैप, और राजनीतिक संदेश — सब कुछ एक साथ पैक होकर आता है।
तो कुल मिलाकर, चिराग पासवान सिर्फ़ चुनाव लड़ने की नहीं, बिहार की राजनीति की दिशा बदलने की तैयारी में हैं। सवाल अब यही है — क्या बिहार तैयार है एक नए राजनीतिक चेहरे के लिए? या फिर वही पुराना गठबंधन-तोड़-बनाओ खेल चलता रहेगा? 2025 का चुनाव सिर्फ़ सीटों का नहीं, बल्कि लीडरशिप का इम्तिहान भी बनने जा रहा है — और चिराग पासवान उसमें एक ऐसा सवाल बनकर उभरे हैं, जिसका जवाब न तो बीजेपी के पास है, न नीतीश के पास, और शायद अभी तक तेजस्वी के पास भी नहीं।
राजनीति में वक्त ही बताएगा कौन बाज़ीगर निकलेगा — लेकिन एक बात तय है: चिराग पासवान अब सिर्फ़ एक मोमबत्ती नहीं, पूरे बिहार की सियासत में आग लगा चुके हैं।