भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण — दलितों के “आधुनिक मसीहा”, आंदोलनों के “स्मार्ट जनरल” और युवाओं के बीच “क्रांतिकारी स्टाइल आइकन” अब दलित बेटी के मानशिक , और शारीरिक शोषण के आरोप में फंस चुके है ये आरोप किसी विरोधी पार्टी का नेता ने नहीं लगये , बल्कि उस लड़की ने लगाए है ..जिसने देश का नाम विदेश में रोशन किया है ... जिसने दलितों की आवाज यूएन में बुलंद की है .. जिसके साथ बहुजन आन्दोलन के नाम पर धोखा हुआ है ..."ये कहानी एक ऐसे मसीहा की है, जो दूसरों के दर्द पर भाषण देता है, लेकिन जब बारी खुद के गिरेबान में झाँकने की आती है, तो 'मौन व्रत' धारण कर लेता है।" ये कहानी खुद को भीम आर्मी चीफ कहने वाले, दलितों के मसीहा बनने वाले नगीना सीट से संसद चन्द्रसेखर की है जो न सिर्फ दलित बेटी के शोषण के आरोप में फस चुके है,,,,, बल्कि उन पर और भी गंभीर आरोप लगे ...अब सवाल है ये है- की ऐसा क्या कर दिया नए नवले संसद जी ने, की उन पर fir तक दर्ज करने की बात की जा रही है ... और कौन है वो दलित बेटी जिसने चंद्रशेखर पर शोषण जैसे गंभीर आरोप लगये है ... चलिए इस विडियो में समझते है.
भीम आर्मी चीफ चन्द्र शेखर पर शारीरीक और मानशिक शोषण का आरोप लगाने वाली डॉ. रोहिणी घावरी — एक सफाईकर्मी की बेटी है , पीएचडी स्कॉलर है , और बहुजन मिशन के लिए काम कर रही है — डॉ. रोहिणी का का दावा है कि चंद्रशेखर न सिर्फ़ उन्हें बल्कि कई और बहुजनल ड़कियों को मिशन के नाम पर भावनात्मक रूप से ‘मैनिपुलेट’ करते रहे। कभी ‘सुसाइड’ की धमकी देकर डराते, तो कभी ‘क्रांति’ का सपना दिखाकर नज़दीकियाँ बनाते। और जब सवाल पूछे जाते , तो नेता जी ने फोन उठाना बंद कर देते है , मैसेज अनदेखा कर देते है और मीडिया से भाग खड़े होते है । शायद उन्हें लगा होगा कि “ये मामला भी ठंडा पड़ जाएगा” लेकिन इस बार ऐसा होने वाला नही है ? तो क्या यह पूरा मामला एक महिला की व्यक्तिगत लड़ाई है? या फिर एक ऐसी बहुजन आवाज़ की जो सिस्टम में मौजूद ढोंग को चुनौती दे रही है?
भारत की राजनीति में “दलित हितैषी” कहलाना बड़ा आसान है — बस कुछ आंदोलन कर लो, थोड़ी भाषणबाज़ी कर लो, हाथ में नीला झंडा ले लो,और अपनी राजनीती के लिए बहुजनो को साथ जोड़ो, फिर उनका इस्तेमाल कर किनारा कर लो।"। फिर चाहे वो बेटियाँ डॉक्टर हों, स्कॉलर हों या विदेशों में UN जैसी संस्थाओं में बहुजन समाज की आवाज़ बन चुकी हों — लेकिन जैसे ही वे सवाल उठाएँ — उन्हें ‘गद्दार', 'पर्सनल एजेंडा वाली', या 'पोलिटिकल एजेंट' करार दे दिया जाता है ... .
लेकिन असली सवाल यह है कि जब कोई लड़की बोलती है — तो क्या हम सबसे पहले उसके कपड़े, पार्टी और नीयत को जांचते हैं? या कभी यह भी सोचते हैं कि शायद उसकी आवाज़ के पीछे सच हो सकता है? डॉ. रोहिणी की आवाज़ सिर्फ़ निजी शिकायत नहीं, बल्कि एक चेतावनी है — कि जिन मंचों पर ‘बहुजन क्रांति’ की बात होती है, वहां भीतर से बहुत कुछ सड़ चुका है। वो सवाल करती हैं — “सांसद चुप क्यों हैं? क्या इसलिए कि वो जवाब देने लायक नहीं हैं, या इसलिए कि अब वो खुद ही सवाल बन चुके हैं?”
जब सत्ता के मंच से आवाज़ आती है — की “दलितों की राजनीति करो, सत्ता छीनो!” तो हज़ारों युवाओं की आँखों में उम्मीदें चमकती हैं। लेकिन अगर उसी मंच से, उन्हीं नारों की आड़ में, कोई बहुजन महिला की गरिमा को रौंदता है, तो क्या हम उसे भी “क्रांति” मान लें? डॉ. रोहिणी घावरी, एक पढ़ी-लिखी दलित लड़की है ,जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र से लेकर स्विट्ज़रलैंड तक भारत का प्रतिनिधित्व किया — आज एक ऐसी आवाज़ बनकर उभरी हैं, जो भीम आंदोलन के ‘पुरुष वर्चस्ववादी पाखंड’ को चुनौती दे रही है। ,
लेकिन उन्हें ही बदनाम करने की सियासी चाले भी चली जा रही है ... लेकिन घावरी ने साफ़ कर दिया है "अब वो चुप नहीं रहूंगी " उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर ने सिर्फ उनका बल्कि कई लड़कियों का भावनात्मक शोषण किया है — जिस मिशन के लिए बेटियाँ पढ़-लिखकर तैयार हो रही हैं, उस मिशन में ही उनके साथ छल किया जा रहा है, और गुनहगार को हीरो बनाकर मंचों पर चढ़ाया जा रहा है। और ये सब मिशन के नाम पर हुआ। जो लोग मुझे पोलिटिकल एजेंट बता रहे है उन्हें ये जान लेना चाहिए की “मैं 8 घंटे की नौकरी करके कमाती हूँ, एनजीओ चलाती हूँ, राजनीति में कोई करियर नहीं। पॉलिटिकल स्टंट क्यों करूंगी? अगर मैं सबूत दे रही हूँ, तो चंद्रशेखर भी सबूत पेश करें। “उसने मुझे मैनिपुलेट किया, धमकाया, सुसाइड तक की धमकी दी। पर अब डर नहीं लगता। जो लड़कियाँ सामने नहीं आ सकीं, मैं उनके लिए भी बोलूंगी।”
अमर उजला की एक रिपोर्ट के मुताबिक चन्द्र शेखर पर 38 आपराधिक केस दर्ज हैं इनमें सहारनपुर में 26, गाजियाबाद में दो, दिल्ली में चार, मुजफ्फरनगर, लखनऊ, हाथरस, अलीगढ़ और नगीना में कुल छह मुकदमे दर्ज हैं लेकिन एस बार आरोप महिला उत्पीडन का है , उसके शारिरीक और मानशिक शोषण का का , ........
अब ये लड़ाई सिर्फ एक सांसद और एक महिला की नहीं, बल्कि सत्य और ढोंग की है। और हमें तय करना है कि हम किसके साथ हैं — सच के, या सिर्फ अपने- अपने 'हीरो' के?