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क्या हिन्दुस्तान का असाम स्टेट जल्द ही मुस्लिम स्टेट बन जाएग.

Friday, July 25 | July 25, 2025 WIB Last Updated 2025-10-02T04:52:06Z

 क्या हिन्दुस्तान का असाम स्टेट जल्द ही मुस्लिम स्टेट बन जाएग. क्या असंम,पश्चिम  बंगाल ,बिहार और ..उतर प्रदेश जैसे राज्यों में बंगाल्देशी घुसपैठिये  डेमोग्राफी बदल रहे है...और क्या भारत भी उन देशों की तरह मुस्लिम राष्ट्र बन सकता है, जो कभी हिंदू या बौद्ध संस्कृति के केंद्र थे? “अगर मैं आपसे कहूँ कि 2041 तक असम में हिंदू अल्पसंख्यक बन सकते हैं, तो क्या आप इस पर यकीन करेंगे? आप भले ही इस पर  यकींन ना करे लेकिन नेताओं के आक्कड़े, उनके बयांन तो यही दावे कर रहे है .. और ये आंकड़े केवल असम की कहानी नहीं बता रहे  हैं, बल्कि भारत की डेमोग्राफी और राजनीति का भविष्य तय करने वाले संकेत  दे रहे हैं।”..


“2011 की जनगणना कहती है—असम की कुल आबादी 3.12 करोड़ थी , जिसमें 1.07 करोड़  यानि 34.22% मुस्लिम  और 1.92 करोड़ यानी 61.47% हिंदू थे ...  1951 में मुस्लिम की यह हिस्सेदारी करीब 24% थी। जो २०११ में  34.22% के आकडे को पार कर चुकी है  अगर यही ट्रेंड चला, तो 2041 में मुस्लिमो की आबादी  हिंदुओं के बराबर या उससे आगे निकल सकती है, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा भी हाल ही में  कह चुके है की  अगर  मौजूदा जनसंख्या वृद्धि दर ऐसे ही जारी रही तो 2041 तक असम में  हिंदुओं के बराबर या उससे आगे निकल सकती है, अगर ऐसा होता तो  इस बदलाव का असर केवल असम तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह भारत के व्यापक डेमोग्राफिक परिदृश्य को भी बदल सकता है।”




असम की आबादी का संतुलन पिछले 70 साल में तेजी से बदल रहा है।  जिसके आंकड़े इस बदलाव की पूरी कहानी बताते हैं। 1951 में असम की जो मुस्लिम जनसंख्या लगभग 24% थी। 1971 के बाद बांग्लादेश से तेजी से घुसपैठ, और वोट-बैंक की राजनीति ने इसे 2011 आते -आते  34% से ऊपर पहुंचा दिया।  

2001 में असम के 23 जिलों में से 6 मुस्लिम बहुल थे लेकिन  2011 तक जिलों की संख्या 27 हो गई और 9 जिले मुस्लिम बहुल हो गए और आज ये आकड़ा   11+ हो चूका है सीएम सरमा का दवा है  की इनमे केवल 3% मुस्लिम असमिया मूल के हैं, जबकि 31% बांग्लादेश से आए घुसपैठिए हैं।”


 ये हाल सिर्फ असंम का नही है असम की तरह कई राज्यों में जनसंख्या का अनुपात बदल रहा है। यूपी में जो मुस्लिम आबादी 1951 में 12 फीसदी थी  2011 में 19% तक पहुँच गई। । पश्चिम बंगाल में यह 25% से 30%  फीसदी और केरल में लगभग 27%  फीसदी तक पहुच गयी है बिहार भी इसमें पीछे नहीं है .. जहाँ मुस्लिम पापुलेशन 12% से 17% फीसदी तक पहुच गयी है । यह सिर्फ़ एक राज्य का डेमोग्राफिक बदलाव नहीं, है बल्कि भारत की राजनीति, समाज और सुरक्षा की चिंताओं का सबसे बड़ा ट्रिगर पॉइंट बन चूका है  अब ये ‘डेमोग्राफिक पॉलिटिक्स’ के प्रतीक बन चुके हैं।  ये बदलाव केवल आकड़ो का नहीं हैं, बल्कि “कौन बहुसंख्यक है, कौन निर्णायक है” जैसी राजनीतिक समीकरणों की पोल्टिक्स का हथियार बन  चूका है 



हमें ये समझना होगा की कई देशों में डेमोग्राफिक बदलाव ने राजनीति और संस्कृति का नक्शा बदल दिया है। पाकिस्तान में 1947 में 25% फीसदी  गैर-मुस्लिम थे, जो अब 1% से भी कम  बचे हैं। बांग्लादेश में 1947 में  22% फीसदी  हिंदू थे, जो आज 8%  फीसदी रह गए। लेबनान,, अफगानिस्तान और मालदीव भी उदाहरण हैं जहां जनसंख्या परिवर्तन ने पूरे इतिहास को पलट दिया।” धीरे ही सही लेकिन वही भारत में भी हो रहा है 


 

जनसंख्या डेटा का राजनीति में खूब इस्तेमाल होता है।  नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार मुस्लिमों का टोटल फर्टिलिटी रेट 2.3 है, यानी औसतन एक मुस्लिम महिला अपने जीवनकाल में 2.3 बच्चे जन्म देती है। जबकि हिंदुओं  में यही आकड़ा  1.9 है, यह अंतर भले घट रहा है, लेकिन खत्म नहीं हुआ। साथ ही, सीमा-पार माइग्रेशन और वोट-बैंक की राजनीति इन बदलावों को और तीव्र बना रही है असम जैसे राज्यों में इसका असर साफ दिखता है। NRC और CAA  की बहसें इसी डेमोग्राफिक डर और वोट बैंक राजनीति से जुड़ी हैं। शाहीन बाग के आंदोलन से लेकर असम की बॉर्डर सिक्योरिटी तक, यह मुद्दा हर चुनावी मंच पर गूंजता रहा है।” ..सीएम हिमंता सरमा का आरोप है कि कांग्रेस की वोट बैंक राजनीति ने असम के डेमोग्राफिक संकट को जन्म दिया है...  


सीएम सरमा ने कहा कि ये सिर्फ ‘भूमि जिहाद’ ही नहीं बल्कि असम को खत्म करने वाला जिहाद है। योजनाबद्ध तरीके से मुस्लिम आबादी सरकारी और जंगलों की जमीन पर भी कब्जा कर रही है। इसके कारण असम की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक पहचान खतरे में पड़ गई है। अगर यही प्रवृत्ति जारी रही तो अगले 20 वर्षों में असम के मूल निवासी अल्पसंख्यक बन सकते हैं।

 

कांग्रेस पर घुसपैठियों को वोट-बैंक में बदलने के आरोप, AIMIM नेताओं के उत्तेजक बयान, और लगातार बदलता आकड़ो का  संतुलन भारत को एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करता है जहाँ डेमोग्राफी एक सुरक्षा और संसाधन संतुलन का प्रश्न बन चुका है। कुछ कट्टरपंथी संगठनों और नेताओं ने समय-समय पर बयान दिए हैं कि "भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे।" सोशल मीडिया पर ऐसी बयानबाजी को राजनीतिक बहस और डर फैलाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।   



संयुक्त राष्ट्र के डाटा के मुताबिक , वर्ष 2100 तक भारत की मुस्लिम जनसंख्या लगभग 20-22% हो सकती है। लेकिन 50% तक पहुँचना केवल कुछ राज्यों  में ही  संभव है। भारत का मुस्लिम बहुल राष्ट्र बनना निकट भविष्य में संभव  फ़िलहाल संभव नहीं। लेकिन तेजी से बढ़ती  घुसपैठियों की संख्या  देश के लिए मुसीबत बन सकती है   हमें समझना होगा की ऐसे कई देश जहा मुस्लिम ना के बराबर  थे लेकिन आज वो मुस्लिम देश बन गए है...अफगानिस्तान, तुर्की , ईरान ,इंडोनेशिया , इसके उधाहरण है . 


अब  सबसे बड़ा सवाल ये है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून,  NRC, वोटर लिस्ट की शुद्धि, सीमा सुरक्षा और जमीन पर अतिक्रमण रोकने जैसे कदम क्या वास्तव में ‘सांप्रदायिक’ समझे जाएंगे या ये देश की सुरक्षा और संतुलन के लिए ज़रूरी हैं? क्या हमारी राजनीति इन मुद्दों को गहराई से और सच्चाई के साथ उठाने की हिम्मत रखती है, या ये सब सिर्फ चुनावी भाषणों और वोट बैंक की राजनीति तक ही सीमित रह जायेगा ? लोकतंत्र सिर्फ वोट डालने और गिनने तक सीमित नहीं होता, बल्कि इसमें सामाजिक संतुलन, जनसंख्या का सही प्रबंधन और सभी समुदायों का सामंजस्य भी जरूरी है। अगर हम समय रहते इन बदलावों को समझकर ठोस कदम नहीं उठाते, तो असम का अनुभव आने वाले भारत की कहानी बन सकता है।


आपकी क्या राय है? क्या असम में हो रहे बदलाव पूरे देश के लिए चेतावनी हैं? अपनी राय नीचे कमेंट करें। अगर यह वीडियो आपको जानकारीपूर्ण लगा हो, तो लाइक, शेयर और सब्सक्राइब जरूर करें। अगले वीडियो में हम अन्य राज्यों और अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।”






 

 

 

 


 

 

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