आपने अक्सर फिल्मों में देखा होगा कि अदालत में जब भी कोई गवाही देने आता है, तो वह व्यक्ति कटघरे में खड़ा होकर किसी किताब पर हाथ रखकर कसम खाता है. क्या आप जानते हैं कि ये प्रथा कब शुरू हुई थी..कैसे शुरू हुई और किसने शुरू की....
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EARTH 24 |
लेकिन 1969 में जब लॉ कमीशन ने अपनी 28वीं रिपोर्ट सौंपी तो भारत में किताब पर हाथ रखकर कसम खाने की यह प्रथा समाप्त कर दी गई...लॉ कमीशन की रिपोर्ट में देश में भारतीय ओथ अधिनियम, 1873 में सुधार का सुझाव दिया गया था जिसके बाद इसके स्थान पर 'ओथ्स एक्ट, 1969' पास किया गया....और इस तरह से ओथ्स एक्ट, 1969' के बाद से पूरे भारत एक तरह का शपथ कानून लागू कर दिया गया...भारत में इस कानून को पास करने के बाद सपथ को सेक्यूलर बना दिया गया...हिन्दू, मुस्लिम, सिख, पारसी और इसाई के लिए अब अलग-अलग किताबों और शपथों को बंद कर दिया गया है..और सभी के स्थान पर अब शपथ सिर्फ एक सर्वशक्तिमान भगवान के नाम पर दिलाई जाती है....
अदालतों में अब जो कमस खिलाई जाती है वो कुछ इस तरह से होती है....मैं ईश्वर के नाम पर कसम खाता हूं / ईमानदारी से पुष्टि करता हूं कि जो मैं कहूंगा वह सत्य, संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूँगा"....यहां पर आपको यह भी बतादें की यह शपथ 12 साल के कम उम्र के गवाह को नहीं लेनी होती है...ओथ एक्ट,1969' में ऐसा माना गया है कि 12 साल से कम उम्र के बच्चे खुद भगवान का रूप होते हैं....
अब आपको बतातें हैं कि आखिर यह कसम या शपथ क्यों दिलाई जाती है...किसी भी मामले में गवाह जो कहना चाहता है उसे वह दो तरीके से कह सकता है...पहला शपथ खाकर..जैसा की आपने कुछ फिल्मों में देखा होगा...और दूसरे तरीख है... शपथ पत्र पर लिखकर....अगर कोई व्यक्ति कसम खाने के बाद झूठ बोलता है तो इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 193 उसे झूठ बोलने के आरोप में 7 साल की सजा का भी प्रावधान है...
इतना ही नहीं इस सेक्शन में यह भी प्रावधान है कि अगर गवाह किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी मामले में झूठा प्रमाण या साक्ष्य देगा या किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी मामले में उपयोग किये जाने झूठा साक्ष्य बनाएगा तो उसे भी 7 साल की सजा या फिर जुर्माने से दण्डित किया जायेगा....आपने देखा होगा कि आप जब भी कचहरी से कोई एफिडेविट बनवाते हैं तो वकील वही नाम लिख देता है जो कि आप उसको बताते हैं. वह उस नाम को वेरीफाई नहीं करता है क्योंकि उसको पता होता है कि आप शपथ पत्र पर कुछ भी गलत लिखवाएंगे तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होगे और जेल जाएंगे.....
अब आपको सबसे महत्वपूर्ण बात बताते हैं कि आखिर इस शपथ लेने की शुरूआत कैसे हुई....दरअसल पुराने समय के लोग अब की अपेक्षा बहुत ज्यादा धार्मिक हुआ करते थे....ये लोग धार्मिक मूल्यों के बहुत अधिक महत्व देते थे इसलिए तब राजाओं और अंग्रेजों ने भारतीयों की धार्मिक आस्था का उपयोग लोगों से सच उगलवाने में करने लगे..ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि समाज में अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगया जा सके और अपराधियों को दण्डित किया जा सके..
...आपको बतादें कि हमारे भारतीय संविधान में किसी भी तरह के गीता, कुरान या फिर किसी भी तरह के धार्मिक किताब का कोई उल्लेख नहीं है...दरअसल भारत की फिल्मों में अभी भी पुराने समय की प्रथा को दिखाया जाता है जिसमें गवाह को गीता या कुरान पर हाथ रखकर कसम खानी होती है लेकिन भारत की अदालतों में यह प्रथा प्रचलन में नहीं है...इसका मतलब कि अब भारत की अदालतों में गीता या कुरान जैसी ना तो कोई पवित्र पुस्तक मौजूद है और ना ही किसी किताब पर हाथ रखकर कसम खिलायी जाती है...अब भारत की अदालतों में सिर्फ की पुस्तक भारतीय संविधान होती है....