
फतेहपुर- यमुना तिरहार का बीहड़ क्षेत्र...स्वास्थ्य योजनाओं को पहुचाने का संघर्ष ... जोखिम भरे रास्तो से कराहती प्रसूताएं.. संक्रामक रोगो के संक्रमण का जोखिम.. जनपद मुख्यालय से सुदूर दुर्गम क्षेत्र.. आवागमन मे जटिलता.. लैंगिक भेदभाव से हासिये पर जी रही महिलाओ के लचर स्वास्थ्य का होना..मार्ग दुर्घटना के शिकार राहगीरो का झोलाछाप पर निर्भर होना ...प्रतिवर्ष मौसम परिवर्तन मे महामारी के फैलने का अंदेशा जैसी जोखिम भरी स्थितियो मे जीने वाला यमुना तटवर्ती असोथर क्षेत्र पहले से ही सुविधाओ से वंचित रहा है.. चाहे वह मुगल सल्तनत के खिलाफ फूंके जाने वाले बिगुल के कारण हो या ब्रिटिश उपनिवेश के हिस्सा बनने से इंकार का कारण रहा हो... जिस पर आजादी के सत्तर साल के बाद भी सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं का रंग चढ़ता नही दिख रहा है वैसे तो क्षेत्र ब्लाक मुख्यालय होने की वजह से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र जैसी स्वास्थ्य सेवा से गुलजार है फिर भी इस पर डाक्टरो के आभाव..

कर्मचारियों के उदासीन व्यवहार.. सुविधा शुल्क की बढ़ती मांग ने जहां इसे पहले से ही आम आदमी के लिए पंगु बना दिया है वही प्रति वर्ष होने वाले मौसम परिवर्तन के समय हैजा मलेरिया जैसी महामारी आज भी सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वार बनाए गए सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य प्राप्ति की दिशा मे हवा मे तीर मारने जैसा आभास कराती है.. स्वास्थ्य सुविधा से वंचित इस क्षेत्र के लोगो के बेहतर स्वास्थ्य के लिए सरकार द्वारा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र असोथर की महत्वपूर्ण आधारशिला रखी गयी जिसे सुनकर क्षेत्रवासियो की खुशी का ठिकाना ना रहा लेकिन बहुत जल्द ही लोगो की यह खुशी फुर्र होती गयी जब सम्बन्धित स्वास्थ्य केन्द्र के भवन निर्माण के बाद भी वह खेत मे पंछियो को भगाने के लिए बनाए गए धोखार की भूमिका निभाता प्रतीत हुआ... शासन द्वारा प्रदान की गयी इस बहुमहत्वपूर्ण परियोजना पर सरकारो के बदलने का भी कोई असर नही हुआ व ये महज ठूंठ की तरह खड़ा होकर लोगो को मुह चिढ़ाने का कार्य करता रहा.. एक तहफ जहाँ स्वास्थ्य विभाग संसाधनो की अनुपलब्धता व कर्मचारियों का टोटा होने का बहाना बना अपना पल्ला झाड़ता रहा वही दूसरी तरफ जनपद के हाकिम से लेकर सूबे के मुखिया तक उठायी जाने वाली मांग बेअसर साबित होती रही.. आखिर निष्पक्ष व साफ सुथरी राजनीति का ढिंढोरे पीटने वाली योगी सरकार क्यू इस मुद्दे पर किसी भी तरह की सक्रियता नही दिखाती.. क्या प्रदेश व देश की सरकारे इतना गैरसंवेदनशील हो चुकी है कि उन्हे लोगो के स्वास्थ्य की किसी भी तरह की परवाह नही रही.. सरकार अगर झोलाछाप डाक्टरो को प्रतिबन्धित करने मे इतना सक्रियता दिखाती है तो क्यू वे इतनी सक्रियता स्वास्थ्य सुविधाओ की बहाली के लिए नही दिखाती.. अगर शासन द्वारा ग्रामीण क्षेत्र मे स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से सुगम कर दी जाएं तो लोगो द्वारा इन झोलाछाप डाक्टरो का आसानी से परहेज कर दिया जाएगा.. एक तरफ सरकार द्वारा ना तो स्वास्थ्य केन्द्रो के लिए गुणवत्ता बहाली की जा रही बल्कि स्वास्थ्य सुविधा दे रहे प्रैक्टिशनरो को जरूर प्रतिबन्धित किया जा रहा जिससे लोगो मे जबरा मारे रोए ना दे वाली कहावत चरितार्थ होती देखी जा रही... जनपद के अति पिछड़े यमुना तटवर्ती तिरहार क्षेत्र की स्वास्थ्य सैवा को सुगम करने के लिए बनाए गए इस सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र असोथर को जनहित मे प्रायोगिक बनाने की दिशा मे अतिशीघ्र कदम उठाना चाहिए
अम्बरीष गुप्ता