> क्या सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी से नफ़रत में —राहुल गांधी अब भारत की सुरक्षा और सेना को भी दांव पर लगाने को तैयार हैं -->

Notification

×

Iklan

Iklan

क्या सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी से नफ़रत में —राहुल गांधी अब भारत की सुरक्षा और सेना को भी दांव पर लगाने को तैयार हैं

Wednesday, November 5 | November 05, 2025 WIB Last Updated 2025-11-06T06:47:48Z

क्या सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी से नफ़रत में —राहुल गांधी अब भारत की सुरक्षा और सेना को भी दांव पर लगाने को तैयार हैं ? क्या ये वही राजनीति है — जो सत्ता की भूख में सेना तक पर सवाल उठा देती है? ये सवाल "सत्ता" का  नहीं "राष्ट्र" का है ?  जिसे राहुल गाँधी .... अपने  बयानों छ्हलनी कर रहे है ..... तो क्या राहुल गांधी — वही रास्ता चुन रहे हैं, जिस पर चलकर श्रीलंका टूटा, नेपाल बिखरा,और बांग्लादेश हिंसा में जल उठा? क्या सत्ता का मोह इतना गहरा है कि अब सेना भी “राजनीतिक टार्गेट” बन चुकी है? .......




यह कहानी है एक ऐसे वक़्त की...जब सत्ता की भूख ने राष्ट्रवाद की लकीर पार कर दी। जब विपक्ष की राजनीति इतनी नीचे गिर चुकी है ..कि सवाल दुश्मनो से नहीं, अपने सैनिकों से पूछे जाने लगे है ..  जो ना सिर्फ सेना के लिए बल्कि  लोकतंत्र  के लिए भी  सबसे बड़ा खतरा साबित हो सकता है ..“वो कहते हैं — ‘संविधान खतरे में है... लोकतंत्र खत्म हो रहा है... भारत को बचाना होगा।’ हर मंच पर, हर रैली में — राहुल गांधी एक ही लाइन दोहराते हैं। लोकतंत्र खत्म हो रहा है लेकिन सवाल ये है —  किससे बचाना है भारत को? और किससे खतरे में है ये संविधान?”  राहुल गाँधी की उस सोच से जो देश को बाँटने में जुटी है है... या उस कांग्रेस से जिसे अंग्रेजो ने बनया .......


“पिछले दो सालों में राहुल गांधी का हर भाषण एक पैटर्न फॉलो करता है —संविधान, जाति और न्याय। वो कहते हैं — ‘90% भारत को हक नहीं मिला।’ वो कहते हैं — ‘10% ऊँची जाति के लोग सेना, न्यायपालिका और कॉरपोरेट को कंट्रोल करते हैं।’ और फिर यही लाइन, बार-बार दोहराई जाती है —संविधान पर हमला हो रहा है।’  लेकिन वो ये भूल जाते की.. इसी कांग्रेस की इंदिरा गाँधी ने .भारत का संविधान खतम करने की कोशिश की.. न्यायपालिका, मीडिया, विपक्ष — सबकी आवाज़ दबा दी गई थी। संविधान की धज्जियाँ उड़ाई गईं —और आज उसी पार्टी के नेता  संविधान को “खतरे” में बताकर जनता के मन में शक के बीज बो रहे हैं।


”क्या ये मज़ाक नहीं? जिसने संविधान को कुचला, वो आज उसके रक्षक बनने का ढोंग कर रही  है। वो कांग्रेस जिसने  सत्ता के लिए प्रेस की आज़ादी तक को तालो में कैद कर दिया था ,आज अभिव्यक्ति की आज़ादी का झंडा लेकर चल रही है। राहुल गांधी अब सिर्फ़ चुनाव नहीं लड़ रहे —वो एक ‘कास्ट नैरेटिव’ बना रहे हैं। जहाँ हर मुद्दे का जवाब जाति है। हर असमानता का कारण — ऊँची जाति का वर्चस्व है । और हर समाधान — ‘जाति जनगणना’ है ।  अब तो एक नारेटीव और बानने की कोशिश की जा रही है .. देश की सरकारे जनता के वोट से नहीं .. बल्कि वोट चोरी से बन रही है ..... 


ये लड़ाई मोदी बनाम राहुल की नहीं है। ये लड़ाई है भारत बनाम सत्ता की भूख की। जहाँ राहुल गाँधी सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है 

जब कोई नेता अपने देश की सेना पर सवाल उठाता है,तो सिर्फ़ एक सरकार नहीं —पूरा राष्ट्र कमजोर होता है।  जब आप सेना, न्यायपालिका, और कॉर्पोरेट तक में जाति खोजने लगते हैं —तो सवाल उठता है — क्या भारत को Social Justice चाहिए, या ‘जाति पर आधारित सत्ता का बँटवारा? वो कहते हैं — ‘Merit ऊँची जातियों का झूठा नैरेटिव है।’यानि अब ‘काबिलियत’ भी जाति से तौली जाएगी?


 राहुल गाँधी की ये कास्ट नैरेटिव’ वाली राजनीति सिर्फ़ देश के मंचों तक सीमित नहीं। विदेशी धरती पर भी राहुल गांधी वही कहानी दोहराते हैं —इंडियाज़ डेमॉक्रेसी इज़ अंडर अटैक ..इंस्टिट्यूशन्स आर कैप्चर्ड.....जो सवाल संसद में पूछे जा सकते थे,अब वो केम्ब्रिज, लंदन और वॉशिंगटन में पूछे जा रहे है .. ताकि भारत को बदनाम और देश को जातियों में बंटा जा सके 

   

“राहुल गांधी का नया नैरेटिव .... वोट चोरी , संविधान खतरे में .. और सेना पर 10 % उची जातियों का कब्ज़ा  ... ये ‘संविधान रक्षा’ के लिए नहीं है  असली मकसद तो ‘राजनीतिक पुनर्वास’  यानी सत्ता हासील करने का है...  कहानी वही है —‘सत्ता चाहिए’,‘जनता से नहीं मिल रही’, तो अब संविधान को ढाल बना लो। और जब ढाल भी काम न आए, तो सेना, संविधान और लोकतंत्र — तीनों पर सवाल खड़े कर दो। पर याद रखिए —देश संविधान से चलता है,संविधान उस भरोसे से —जिसे इस तरह की बयानबाज़ी हर दिन कमजोर कर रही है।” 



राजनीति में बयान देना आसान है, पर ज़िम्मेदारी उठाना मुश्किल। और राहुल गाँधी से बड़ा  उद्धरण भला कौन हो सकता है .. आपको याद होगा जब राहुल गांधी ने मोदी सरनेम टिप्पणी की — और कहा था की सभी चोरों का सरनेम मोदी है? जिसके बाद कोर्ट ने से उन्हें फटकार मिली थी ..जब सेना पर प्रश्न उठाए गए,

तो सुप्रीम कोर्ट तक ने   राहुल  गाँधी को फटकार लगई —कि “राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा को मिलाना खतरनाक खेल है।” 'बिना किसी सबूत के आप ये बयान क्यों दे रहे हैं? अगर आप सच्चे भारतीय हैं, तो आप ऐसा कुछ नहीं कहते पर राहुल गांधी मानो किसी और ही खेल में हैं —जहाँ अदालत की फटकार भी राजनीतिक भाषण में बदल दी जाती है।


यह मत भूलिए — की ये वही कांग्रेस पार्टी है ..जिसे एक अंग्रेज़ अधिकारी —ए. ओ. ह्यूम ने भारतीय नेताओं के साथ मिलकर बनया था ...  कांग्रेस सिर्फ़ एक राजनीतिक पार्टी नहीं थी, वो अंग्रेज़ों की बनाई हुई ‘एक Safety टूल था जिसक असली मक़सद था — जनता के ग़ुस्से को कम करना  । यानी, लोग अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ सड़कों पर न उतरें, हथियार न उठाएँ — बल्कि मीटिंगों और प्रस्तावों में अपना ग़ुस्सा “निकाल” दें। यही वो कांग्रेस थी जो अंग्रेज़ों के दौर में तो चुप रही लेकिन आज उसी कांग्रेस के नेता लोकतंत्र बचाने की बात करते हैं।


"ये कहानी सिर्फ़ राहुल गांधी की नहीं — ये कहानी है उस सियासत की, जो देश की जड़ों में ज़हर घोल रही है। पड़ोसी देशों को देखिए — श्रीलंका जातीय राजनीति में जल गया, नेपाल पहचान की लड़ाई में बिखर गया, बांग्लादेश मज़हबी नफ़रत में झुलस गया… और अब वही आग, राहुल गांधी की ज़ुबान से भारत के घर में सुलगाने की कोशिश हो रही है।


राहुल गांधी जिस चिंगारी से राजनीति जलाना चाहते हैं, वो अगर फैली — तो वही आग देश को भी निगल जाएगी। क्योंकि याद रखिए —जब राजनीति राष्ट्र से बड़ी हो जाए,तो राष्ट्र हमेशा हार जाता है।"  आप क्या सोचते है इस बारे में हमें कमेन्ट बॉक्स में लिखकर बताइए ...  की क्या राहुल गाँधी आज जो कुछ भी  संविधान को खतरे में बताकर कर रहे है क्या वो सही ..?


×
Latest Stories Update