> बिहार की सियासत में लड़ाई सिर्फ कुर्सी की नहीं है — अब ये रिश्तों की जंग बन चुकी है। -->

Notification

×

Iklan

Iklan

बिहार की सियासत में लड़ाई सिर्फ कुर्सी की नहीं है — अब ये रिश्तों की जंग बन चुकी है।

Monday, November 10 | November 10, 2025 WIB Last Updated 2025-11-10T18:24:04Z

बिहार की सियासत में लड़ाई  सिर्फ कुर्सी की नहीं है — अब ये रिश्तों की जंग बन चुकी है। यहाँ सत्ता के लिए अब नीतियाँ नहीं, खून के रिश्ते दांव पर लगे हैं। जहाँ बिहार की सियासत में दो सगे भाई अब कट्टर सियासी दुश्मन बन चुके है .. एक बिहार का सीएम बनाना चाहता है .. तो दुसरा बिहार की सियासत का किंगमेकर बनकर . उसे उसी कुर्सी से उतारने की कसम खा चुका हैं।ये कहानी उस परिवार की है जिसने बिहार में  दशकों तक राज किया ..  अब वही परिवार अपनी दिशा खोता जा रहा है।



कभी लालू यादव के दोनों बेटे एक ही कार में बैठकर रैलियों में जाते थे, दोनों एक ही मंच से भाषण देते थे, एक-दूसरे की जीत के लिए वोट मांगते थे…लेकिन अब  वक्त बदल चुका है।अब मंच भी अलग हैं, पार्टी भी  ... जो तेजप्रताप यादव कभी ..तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते थे .. लेकिन आज वही तेजप्रताप यादव तेजस्वी यादव की  राह का सबसे बड़े रोड़ा बन चुके है ..और अब उनका निशाना है वही परिवार, जिसने उन्हें राजनीति भी सिखाई  और पार्टी से बहार का रसता भी दिखया..जनता उन्हें एक सिक्के के दो पहलू मानती थी। लेकिन वक्त ने करवट ली और आज वही दोनों भाई दो अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता हैं। तेजस्वी सत्ता की दौड़ में सबसे आगे हैं, जबकि तेजप्रताप उसी राजनीति में बगावत का चेहरा बन चुके हैं


सवाल यही है — क्या लालू परिवार का भी वही हाल होगा ...जैसा कुछ साल पहले यूपी में मुलायम परिवार का हुआ था ? तब अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव को 'साइकिल' से उतारकर पैदल कर दिया था. और आज वही तेजस्वी यादव ने तेजप्राताप यादव के साथ किया है ..जब सियासत घर के भीतर उतर आती है, तो रिश्ते भी वोट बैंक में बदल जाते हैं।” सत्ता की कुर्सी जब सामने होती है, तो भाई भी विरोधी बन जाते हैं।”...“जब घर के दो वारिस एक ही ताज पर नज़र रखते है ..तो महाभारत तय है। और आज यही लालू परिवार के साथ हो रहा है... बिहार की इस महाभारत में, जीत चाहे किसी की भी हो…हार लालू परिवार की तय है।


बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लालू परिवार कलह खुलकर सडको पर आ चूका है ... लालू की बनाई विरासत अब उनके ही घर में बिखरने लगी है।”लालू परिवार का संघर्ष अब केवल सत्ता का नहीं है , बल्कि अस्तित्व की लडाई का बन चूका है। तेजस्वी यादव के पास पार्टी है , संगठन और परिवार का समर्थन है, जबकि तेजप्रताप के पास जिद और बेबाक तेवर है। राबड़ी देवी, जो कभी हर भाषण में दोनों बेटों को एक साथ ‘हमारा भविष्य’ कहती थीं,

आज किसी भी मंच पर नज़र नहीं आतीं। उनके मौन में वो दर्द है, जो किसी माँ का नहीं, बल्कि एक राजनीतिक घराने का है।” अब यह लड़ाई ‘भाई बनाम भाई’ की  नहीं, ‘विरासत बनाम विद्रोह’ की जंग बन चुकी है। 


बिहार चुनाव से ठीक पहले लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता  दिखया तो तेजप्रताप यादव ने कभी न आरजेडी में शामिल होने की कसम खाली   ..सियस्त में दुशमनी इस कदर बधी .की तेज प्रताप ने आर जेडी छोड़ खुद एक नयी पार्टी बना बनाली  ..और आज अपने ही परिवार के सामने चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे है ।...क्या है लालू परिवार के दो राजकुमारों की सियासी दुशमनी की असली कहानी , कौन है जिसने दो भैईयों को कट्टर सियासी दुशमन बना दिया ? और क्या तेजप्रताप तेजस्वी यादव को टक्कर दे पाएंगे चलिए ..इस  विडियो में समझते है ?



तेजप्रताप यादव की यह बगावत कोई  दिन में नहीं पनपी… इसके बीज उस वक्त बोए गए थे, जब साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव का माहौल गर्म था।लालू यादव जेल में थे, और पार्टी की कमान छोटे बेटे तेजस्वी यादव के हाथों में थी।  तेजस्वी यादव आरजेडी की कमान संभालकर सत्ता में लौटने बेकरार थे ? लेकिन इसी जोश के बीच एक साया धीरे-धीरे पीछे छूट रहा था — तेजप्रताप यादव का । उन्हें लगने लगा कि पार्टी की रोशनी अब सिर्फ तेजस्वी पर पड़ रही है, और उन्हें अंधेरे में धकेल जा रह हैं। यही एहसास, धीरे-धीरे नाराज़गी, फिर आक्रोश, और आखिरकार विद्रोह में बदल गया।..


लेकिन इस तूफान का असली मोड़ तब आया, जब लालू यादव ने उन्हें पार्टी से ६ साल के लिए निष्कासित कर दिया.वजह सिर्फ एक तस्वीर थी — अनुष्का यादव के साथ साझा की गई तस्वीरें, और सोशल मीडिया पर दिए उनके बयान। लालू यादव ने बेटे पर आरोप लगाया कि उनका आचरण “पारिवारिक और सामाजिक मर्यादा” के विरुद्ध है। यानी, पिता ने बेटे को घर और पार्टी — दोनों से बाहर कर दिया।  तेजप्रताप के लिए ये सियासी नहीं, निजी चोट थी — और उसी दिन उनके भीतर का ‘विद्रोही’ जन्मा।


तेजप्रताप ने उस वक्त कहा था: “अगर मुझे पार्टी से निकाला गया है, तो मैं अपनी खुद की  पार्टी बनाऊँगा, और आज वही हो चुका है। आज जनशक्ति जनता दल यानी (JJP) अब तेजप्रताप की नई पहचान है। उनके लिए अब राजनीति सिर्फ कुर्सी की लड़ाई नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की जंग बन चुकी है। 


पर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई —इस घर की तीसरी आवाज़, रोहिणी आचार्य, जो कभी अपने पिता की किडनी देकर मिसाल बनी थीं.. उन्हें भी तेजस्वी की नफरत का शिकार होना पडा ...यानी सिर्फ तेजप्रताप यादव ही अकेले तेजस्वी की नफरत का  शिकार नहीं हुए इसमें एक और नाम शामिल था रोहणी आचार्य का जिसका  मतलब साफ है: की अब तेजस्वी यादव के सामने सिर्फ तेजप्रताप ही चुनौती नहीं थे , बल्कि रोहिणी भी खुलकर उनकी राह में खड़ी हो चुकी हैं।  ये वैसा ही था .. जैसे कुछ साल पहले यूपी के मुलायम परिवार में हुआ था..और आज वही कहानी  बिहार में दुहराई  जा रही है क्या एक और “महाभारत” की शुरुआत हो चुकी है — जहाँ विरासत के दो वारिस, एक ही ताज के लिए आमने-सामने खड़े हैं? लालू परिवार की यह दरार अब सिर्फ सियासी नहीं रही, यह भावनात्मक भी है —क्योंकि यहाँ हारने वाला कोई विपक्ष नहीं, बल्कि कोई अपना ही होगा है।


तेज प्रताप यादव — जो कभी आरजेडी के भीतर ‘राजकुमार’ कहलाते थे —अब उसी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं।” तेज प्रताप ने अपने ही भाई तेजस्वी के खिलाफ अपना उमीदवार मैदान में उतर दिया है ..दिलचस्प बात ये है कि सिर्फ  तेजप्रताप  यादव ने ही नहीं ..तेजस्वी ने  तेजप्रताप के  खिलाफ अपना उमीदवार उतार दिया है .. “राजनीति ने अब इस परिवार को इतना बाँट दिया है कि अब हर सीट, हर पोस्टर, हर नारा — खून का रिश्ता नहीं, सियासी सीमाएँ तय कर रहा है।” लालू यादव, जिन्होंने दशकों तक बिहार को “परिवारवाद की राजनीति” से जोड़ा, गया आज उसी परिवारवाद की आग में अपने ही  घर को बिखरते हुए देख रहे हैं। तेजस्वी और तेजप्रताप के बीच यह चुनाव सिर्फ दो दलों की टक्कर नहीं, बल्कि उस “लालू युग” की परीक्षा है —जिसमें सत्ता का सपना अब परिवार के टूटते आईने में झलक रहा है।



तेजस्वी यादव आज सत्ता के सबसे मजबूत दावेदार हैं, जबकि तेजप्रताप के पास है जनता से सीधा जुड़ाव और अपनेपन की एक अलग पहचान। पर जब सियासत घर में उतर आती है, तो रिश्ते भी वोट बैंक बन जाते हैं। आज राबड़ी देवी मौन हैं, लालू यादव अब सिर्फ दूर से देख रहे हैं। और रोहिणी आचार्य ने अपनी भावनाओं से इस संघर्ष में एक और परत जोड़ दी है।  बिहार में 6 नवंबर को सिर्फ वोट नहीं डाले जाएंगे — उसके साथ ये भी तय हो जायेगा की कौन होगा लालू की विरासत का असली हक़दार .. तेज प्राताप यदाव या , तेजस्वी यादव .....

 



×
Latest Stories Update